व्यक्ति जब वरिष्ठ नागरिक की श्रेणी में आ जाता है तो दूसरों से बात करते समय स्वयं की अपनी प्रशंसा करते नहीं थकता कि मैंने नौकरी के समय या व्यापार में ये किये थे, जो हर कोई नहीं कर सकता और फिर स्वयं को गौरवान्वित महसूस करता है। लेकिन हकीकत में उसकी उपलब्धियों में कोई खास भूमिका नहीं रहती। इसे आप इस प्रकार समझ सकते हैं।
व्यक्ति जब इस संसार में प्रवेश करता है तो उसकी पूरी जिन्दगी को एक नाटक के रूप में लिया जाये, तो वह सिर्फ एक कलाकार की भूमिका में रहता है और उस नाटक के निर्देशक तथा बहुत सारे सहायक निदेशक उसका मार्गदर्शन करते हैं और इसी के अनुरूप यह अपनी भूमिका निभाता है। व्यक्ति जब अहम के नशे में होता है तो वरिष्ठ नागरिक बनने के बाद दूसरों से बात करते समय यही कहता है कि मैंने अपने जीवन काल में ये-ये उपलब्धियाँ प्राप्त की, जो दूसरा कोई नहीं कर सकता और वह नाटक का कलाकार अपने निदेशक, उप निदेशक का कभी जिक्र नहीं करता। हकीकत में उसकी उपलब्धियों का श्रेय निदेशक, उप निदेशक को जाता है, जिन्होंने उसको नाटक के कलाकार के रूप में सही मार्गदर्शन दिया।
सबसे पहले मैं आपका ध्यान निदेशक की ओर दिलाना चाहूँगा। वह परमपिता परमेश्वर है जिसने हमें इस धरती पर माता-पिता के मार्फत जन्म दिया, पैदा किया। परमपिता परमेश्वर जिसे हम ईश्वर भगवान, गौड व परमात्मा आदि नामों से पुकारते हैं, उन्होंने व्यक्ति के पैदा होने के बाद निम्न उपनिदेशक नियुक्त किये और उन्हें आगे के मार्गदर्शन करने की जिम्मेदारी सौपी। -पिता
- माता-पिता माता ने हमें पैदा करके इस धरती के दर्शन कराये। पिता; उन्होंने बचपन में सभी सुविधायें देने में कोई कसर नहीं छोड़ी, चाहे उन्हें कितनी ही तकलीफों का सामना करना पड़ा हो। बचपन में खिलाया पिलाया और पाल-पोस कर इस स्थिति में ले आये कि हमें उन्होंने प्रथम कक्षा में शिक्षा हेतु दूसरे उपनिदेशक के हवाले कर दिया, लेकिन आगे भी लालन-पालन का समुचित ध्यान रखा।
- शिक्षकगण ने प्राईमरी स्कूल में अक्षर पढाई कराई और फेर हाई स्कूल में प्रदेश के लिये तैयार किया। उसके बाद हाईस्कूल के शिक्षक उप निदेशक के तौर पर हमारी पढाई का मार्गदर्शन किया और फिर कॉलेज में प्रविष्ट हुए। कॉलेज के शिक्षकों ने मार्गदर्शन कर हमें नौकरी करने के लायक शिक्षा दी।
- उच्चाधिकारी नौकरी शुरू करने के बाद उच्च अधिकारियों ने हमारा उपनिदेशक के रूप में मार्गदर्शन किया ताकि हम नौकरी में अच्छा कार्य निष्पादित कर सकें और फिर सेवानिवृत हो गये। इसमें अधीनस्थ अधिकारियों तथा कर्मचारियों का योगदान भी भुलाया नहीं जा सकता ।
अब आप ही बताइयें क्या उपरोक्त निदेशकों के मार्गदर्शन के बिना कोई कलाकार ये उपलब्धियों प्राप्त कर सकता है? जवाब होगा हरगिज़ नहीं। इसलिये भैया काहे को कहते फिरते हो कि मैंने नौकरी में ये ये उपलब्धियाँ प्राप्त की थी। यह सिर्फ आपके अहम् रूपी नशे की बदौलत है, इसलिये आज से उपरोक्त निदेशकों को नमन करते हुए कहिये कि यह परमपिता परमेश्वर की ही कृपा थी, मेरा काम तो सिर्फ उनके मार्गदर्शन की पालना करना भर था। इसलिये उपरोक्त जीवन की अगर कोई उपलब्धियाँ आपको नजर आती है तो उसके श्रेय के हकदार सिर्फ उपरोक्त निदेशक, उपनिदेशक ही है। उन सभी निदेशकों का लाख-लाख शुक्रिया व नमन ।
-Er. Tarachand
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