आत्म-विवेचन

राजस्थान में पाली जिले के छोटे से गाँव वरकाणा में मेरे पिता श्री चिमनारामजी व माता श्री तुलसी बाई रहते थे। जांगिड समाज के होने के कारण लकड़ी का पैतिक कार्य करते थे। उनके यहाँ विक्रमी सम्वत 1996 के श्रावण शुक्ल सप्तमी को मेरा जन्म हुआ। उस समय छियानवें के अकाल नाम से आज भी पुराने लोग भयभीत हो जाते है। यानि वह उस सदी का भयंकर अकाल का समय था। बचपन में चेचक का रोग बहुत फैलता था तथा स्वास्थ्य केन्द्र भी बड़े बड़े कस्बों मे ही होते थे, अतः मेरे पर चेचक ने अपनी बीमारी के निशान उस वक्त छोड़ दिये थे, जो कि आज मेरे नाक पर मौजूद है।

 

चार पाच वर्ष के उम्र में प्राइमरी स्कूल में दाखिला बिजोवा गाँव में दिलाया गया जो कि वरकाणा से तीन किलोमीटर दूर है। उस समय वरकाणा में हाई स्कूल की शिक्षा कक्षा छठी से शुरू होती थी। गांव के बच्चे अपने बस्ते लेकर प्राथमिक विद्यालय बिजोवा में जाते थे, जहाँ न सड़क थी और न ही आवागम के अन्य साधन वरकाणा से बिजोवा जाते समय पानी के नाले के रास्ते से जाना पड़ता था। जिसमें बरसात में पानी बहता रहता था। उन दिनों पैन का उपयोग प्रतिबंधित था, अतः स्याही का दवात व होल्डर हाथ में लिये पद यात्रा करनी पडती थी। प्राथमिक विद्यालय में अनुशासन इतना भयंकर था कि कक्षा का एक विद्यार्थी गलती करता तो पूरी कक्षा के छात्रों को तालाब पर शिक्षक ले जाते और वहा बरगद कि डालों को पकड़ कर झूलने का आदेश मिलता। कभी कभी कक्षा में एक विधार्थी के शरारत करने पर पूरी कक्षा के छात्रों को मुर्गा बनने की सजा मिलती।

 

कक्षा छठी में आने पर मुझे अपने गाँव वरकाणा में ही प्रवेश मिल गया था। हाई स्कूल जैन समाज द्वारा संचालित होने के कारण छात्रावास में सिर्फ जैन छात्र ही रह सकते थे, अतः स्कूल में पढ़ने वाले अजैन छात्र बाहर रहकर पढ़ सकते थे। इस तरह कक्षा छठी से हाई स्कूल तक की शिक्षा अपने गांव में ही पूरी की। शहर देखने की लालसा में गर्मी की छुट्टियों मे पाली में अपने रिश्तेदारों के यहां चला जाता था। दिन में लकड़ी का काम सीखता था. रात में पाली में रहने का आनन्द अनुभव करता। पाली में एक इंजिनियर का शानदार मकान बन गया था, तब एक दिन मेरे रिश्तेदार मुझे उनके बंगले पर दावत में ले गये, तब उन्हें देखकर मुझे प्रेरणा मिली कि मैं भी इन्जीनियर बन जाऊ

 

इसी सोच को लेकर मेने अपने गुरूजनों से अनुरोध किया तो उन्होने बताया कि जोधपुर इंजिनियरिंग कॉलेज में अंग्रेजी माध्यम से प्रवेश परीक्षा आयोजित होती है और उसमें सफल होने पर इंजिनियरिंग की पढाई शुरू होती है मेरे लिए उस समय यह समस्या थी कि मैने हाई स्कूल हिन्दी माध्यम से उत्तीर्ण की थी। अतः अंग्रेजी माध्यम से भौतिक शास्त्र, रसायन शास्त्र तथा गणित का पेपर पास करना बहुत कठिन था मेरे गुरूजी ने प्रधानाध्यापक जी से मेरे बारे में बात की और उपरोक्त विषय की किताबे अंग्रेजी माध्यम वाली मुझे लाइब्रेरी से दिलाने कि प्रार्थना की। प्रधानाध्यापक जी ने कहा यह कारीगर का लड़का क्या दें किताबें पढ़ पाएगा ? आप बेकार में ही उसे प्रोत्साहित कर रहे है, लेकिन उस अध्यापक जी ने मुझे वे सभी इन्टरमीडियट क्लासेज की किताबें मुहैया करवाई और मार्गदर्शन किया। मैं उस समय राजस्थान के एकमात्र जोधपुर इंजिनियरिंग कॉलेज की प्रवेश परीक्षा में बैठा और राजस्थान में 11वें नम्बर पर उत्तीर्ण हुआ। यह उस समय के गुरूदेव श्री भटनागर साहब तथा श्री श्यामलाल जी मितल की कृपा से सम्भव हो सका।

 

श्री पार्श्वनाथ जैन विद्यालय वरकाणा ने मुझे सन् 1963 से 1978 तक स्कूल प्रबंध समिति का मेम्बर रखा। स्कूल के समय श्री हरिशंकर जी परसाई का इतना स्नेह रहा कि रात को पढ़ते समय किताब यह कहकर ले जाते कि अब सो जाओ बेटे, सुबह जगा दूंगा। सुबह जल्दी ही अपनी खिड़की खोल कर आवाज देते और मैं उन्हें नमस्कार करता और वे आशीर्वाद देते। सभी शिक्षकों का स्नेह रहा। अतः कक्षा में प्रथम स्थान रहता। कक्षा नवमी में गणित विषय में 50 में से 46 अंक आऐ तो मैंने रोना शुरू कर दिया था। पिताजी प्रधानाध्यापक जी के पास गये और प्रधानाध्यापक जी ने खुद आकर दाढस बंधाया कि चार अंक कम कोई मायने नहीं रखते।

 

स्कूल की पढ़ाई के समय 1956 में जयपुर में अखिल भारतीय स्काउटस गाईड जम्बूरी (द्वितीय) में स्कूल की तरफ से जयपुर गया। उसके 1 साल पूर्व देसुरी में 21 दिन का श्रमदान कर तालाब खुदाई भी स्काउट के रूप में की आपको आश्चर्य होगा कि हाईस्कूल के इम्तिहान तक स्याही की दवात व होल्डर से लिखना पड़ता। गांव में बिजली व्यवस्था नहीं थी। अतः लालटेन की रोशनी से पढ़ाई करते एकान्त वास में पढ़ाई के लिये वरकाणा गांव की रबारीयों की ढाणी के पास एक छोटी पहाड़ी के पेड़ के नीचे भौतिक और रसायन विषय याद करते स्कूल के छात्रावास के अधीक्षक पद पर श्री सम्पतराज जी भंसाली जोधपुर वालों का आधिपत्य था। वे सर्वेसर्वा थे मुझे अपने पुत्रवत् रखते और अपने पत्रों के जवाब अपने पास पाट पर बैठाकर मुझ से लिखवाते। जबकि प्रधानाध्यापक जी की उनसे मिलने आते, तो वे पाठ के पास खड़े-खड़े ही बात करते, पाट पर उनके पास बैठने की हिम्मत नहीं होती।

 

पिताजी के आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नहीं थी कि वे मुझे हॉस्टल में दाखिला दिला सके, लेकिन उन्होने मुझे इंजिनियरिंग कॉलेज में दाखिला दिला दिया। भगवान की कृपा से एक जांगिड परिवार (श्री शर्मा जी गुलाब सागर) ने मुझे अपने घर पर एक कमरा बिना किराये रहने तथा पढ़ने के लिए दे दिया। कॉलेज की शिक्षा के लिये मैंने 2000 रूपये का ऋण लिया था जो बाद में तनख्वाह से कटा कर पूरा कर दिया। इंजिनियरिंग की पूरी शिक्षा उनके घर पर ही रहकर की। घर से इंजिनियरिंग कॉलेज 5-6 किलोमीटर दूर था। जहां उस समय साईकल से आना-जाना होता था जोधपुर के रहने वाले गुरु जी श्री कुशलराज जी मण्डारी बचपन से ही वरकाणा में शिक्षक थे। वे हमेशा पत्र व्यवहार मेरे लिए करते, लेकिन पिताजी से पोस्टकार्ड वगैरह के पैसे नहीं लेते। मुझे पोस्ट ऑफिस का काम भी उन्होने सिखाया तथा जोधपुर आने पर उनके साडु जी प्रोफेसर श्री देवराज जी मेहता मेरे कॉलेज के समय संरक्षक रहे।

 

कॉलेज के समय भोजन की व्यवस्था श्री महावीर लॉज स्टेशन रोड पर कर रखी थी। होटल के मालिक श्री रामेश्वर जी अग्रवाल बहुत ही सज्जन व्यक्ति है और उस समय से उनके साथ पारिवारिक घनिष्ठ संबंध है। उन्होने अपने घर के हर अवसर पर मुझे याद किया है। पिछले करीबन 50 वर्षों से उनसे मिलना-जुलना लगातार बरकरार है।

 

इंजिनियरिंग शिक्षा पूरी करने के बाद जोधपुर में स्थित नये थर्मल पॉवर स्टेशन पर कनिष्ठ अभियन्ता के पद पर नौकरी लग गई। कनिष्ठ अभियन्ता बनने के बाद गुलाब सागर बच्चे कि गली में एक मकान किराये पर ले लिया था। हमारी शादी बचपन में ही पिताजी ने करा दी थी तथा मुकलावा सन् 1962 में कनिष्ठ अभियन्ता की नौकरी लगने के बाद कराया था, यानि वैवाहिक जीवन सन् 1962 से शुरू हुआ। मेरा ससुराल अपने गाव से दो किलोमीटर दूर दादाई गांव में है। बचपन में शादी को याद करता हूँ तो पाता हूं कि बारात अपने गांव से सुसराल बैलगाड़िया में गई थी और मेरे गाड़ी के बैलों को दौड़ा कर सबसे आगे रखा गया था। शादी में फेरे के समय मुझे पतासे खिला कर राजी कर बैठाया गया था। बाद में श्रीमती जी ने घर बार सुचारू चलाया, बच्चों की अच्छी संस्कारित परवरिश की तथा मुझे नौकरी करने में कोई दुविधा उत्पन्न नहीं होने दी। पिताजी बताते थे कि उस समय मेरी शादी में 400 रूपये खर्च हुए थे तथा आठ लड़कियों का सामूहिक विवाह था।

 

साथ में लालसिंह पुरोहित जो कि वरकाणा में भी पड़ोसी है, कभी-कभी सपरिवार अपने साथ रहता था अकेला रहने पर वरकाणा हवेली सोजती गेट रहतो थो।’ लालसिंह की पत्नि का नाम मदन कवर है अतः उसी तज पर मैंने अपनी पत्नि का नाम भंवरी से बदल कर भंवर कवर कर दिया था जो कि सभी सरकारी रिकार्ड में है।

 

सन् 1970 में मुझे ट्रेनिंग के लिये हरीशचन्द्र माथुर लोक प्रशासन संस्थान जयपुर में विभाग ने भेजा तथा ढाई महीने की ट्रेनिंग के बाद जयपुर में ही पदस्थापित कर दिया। जयपुर में किराये के तीन मकान बदले, लेकिन मजा नहीं आया तो चौथे मकान की तलाश जयपुर के शास्त्री नगर इलाके में की। वहाँ 72ई ए में मकान मालिक ने मुझे बताया किराये के लिये हमारी निम्न शर्तें रहेगी :

 

1 आप मकान में किरायेदार की तरह नहीं, सहयोगी की हैसियत से रहेंगे। 

 

  1. आपके बच्चे हमारे कमरों में तथा हमारे बच्चे आपके कमरों में आ जा सकेंगे।

 

  1. किराये देने के लिये जोर से कहने की जरूरत नहीं है कि पारीक साहब किराया लो।

 

हम उनके यहाँ सिर्फ 8 महीने रहे, फिर सहायक अभियन्ता पद पर पदोन्नति होने पर अवरोल चले गये लेकिन पारीक साहब बाद में जहां भी पोस्टिंग हुई, मिलने के लिये आते रहते। आज भी उनका व्यवहार मिलनसार है तथा पिछले 38 वर्षों से बरकरार है।

 

अचरोल में 220 के.वी. लाइन के निर्माण में लगा दिया जो कि बदरपुर से जयपुर को जोड़ने वाली थी। अचरोल के पहाड़ पर बना किला, अपने कार्यालय के लिये किराये पर ले लिया और अचरोल ठाकुर का फर्नीचर जो कि इग्लैंड में बना हुआ था यह हमारे ऑफिस व घर के काम में आता। 1974 में अचरोल के बाद सब-डिवीजन फालना में पोस्टिंग श्री मोहनलाल जी जैन विधायक की इच्छानुसार हो गई। लेकिन सन् 1975 में चिड़ावा सब डिवीजन जिला झुंझनु में हो गई जो कि जाट बाहुल्य है।

 

जब चिड़ावा में ड्यूटी जोइन की, उस समय स्टॉफ व किसानों की हड़ताल चल रही थी। पांच-छः रोज बाद श्री पांचाल साहब अधीक्षण अभियन्ता सीकर अपने लेखाधिकारी तथा पर्सनल ऑफिस के साथ चिडावा आये और सभी समस्याओं का समाधान चैयरमैन तथा सैकेट्ररी से दूरभाष पर बात कर लिया और हड़ताल खत्म करवाई। उस क्षेत्र में श्री शीशरामजी ओला का वर्चस्व था लेकिन मेरे ऊपर उनकी पूरी मेहरबानी रही। जब मेरी बदली चिडावा से रानीवाडा में हो गई उन्होने टेलीफोन पर कहा अगले सहायक अभियन्ता को चार्ज मत देना, कल शाम तक राज्य के मुख्यमंत्री से बात कर आपका स्थानान्तरण कैंसिल करवाऊंगा। मैंने खुद ही कोशिश कर रानीवाडा स्थानान्तरण करवाया था। अतः नेताजी को दो तीन प्रधानों से कह कर रिलीव हुआ था।

 

रानीवाडा में पंचायत समिति का विद्युतीकरण करना था। अतः मालवाडा गांव में मकान किराये पर लिया तथा लालटेन की लाइट में फिर काम शुरू किया। सन् 1976 से सन् 1979 तक रानीवाडा सब-डिवीजन का काम किया। सन् 1979 में बाड़मेर स्थानान्तरण होने पर गांव वालों की तरफ से एक सप्ताह तक विदाई समारोह चलता रहा जिसमें मेरे साथ रानीवाडा स्टेशन पर तैनात सभी सरकारी अधिकारी भी सम्मलित होते । आखिर के सातवें दिन श्री शांतिलाल शर्मा व मफतलाल शाह द्वारा दिए गए विदाई समारोह में करीब 150 व्यक्ति शामिल हुए और जोधपुर से हलवाई बुलाया गया था। यह रानीवाडा क्षेत्र के गांव वालों का प्रेम आज भी भूल नहीं पाया हूँ।

 

रानीवाडा से सन् 1979 में बाड़मेर स्थानान्तरण हो गया। बाड़मेर में उस समय शहर क्षेत्र में ही बिजली थी। उसके बाद PHED विभाग में विद्युत मंडल में बाहरी जल प्रदाय योजनाओं के लिये एक करोड़ रूपये जमा करवाये थे। तब श्रीमान पृथ्वीसिंह जी चैयरमैन ने एक अधिशाषी अभियन्ता तथा पांच सहायक अभियन्ता मय स्टॉफ को बाडमेर पदस्थापित किया ताकि था। तब बाड़मेर जिले के बाहरी गांव विद्युतीकृत हो सके और वाटर वर्क्स के पम्पिंग स्टेशन जो पहले डीजल से चलते थे, बिजली से चलने लगे। 

 

एक बार बाडमेर काका हाथरसी का कवि सम्मेलन था। श्रीमान् बाबेल तथा उनके परिवार के साथ हम भी (काका हाथरसी को सुनने स्कूल मैदान में गये थे। उस रात बाबेल साहब के घर उनके चपरासी ने ही चोरी कर दी थी जो कि श्री रामजीवन जी मीणा SP के प्रयत्नों से ही वापिस माल मिल गया था। 

 

उसके बाद सोजत सब-डिवीजन में 1981 में स्थानान्तरण हो गया तथा सन् 1983 में सिरोही स्थानान्तरण हो गया। सन् 1984 में दोनों लड़कियों की शादी रानी स्टेशन पर चार मकान किराये पर लेकर की थी। शादी में रानी विद्युत मंडल के कर्मचारियों ने शादी में पूरी मदद की तथा रानी के लोगों, जनप्रतिनिधियों तथा उद्योगपतियों ने शादी की शोभा बढ़ाई तथा बारातियों के ठहरने एवं भोजन व्यवस्था आदि की जैन धर्मशाला में व्यवस्था करवाई। शादी का मुर्हत वगैरह बाला सतीजी ने बताया था, क्योंकि मेरी पुत्री कुसुम की सगाई उनके मार्गदर्शन से जोधपुर में हुई थी।

 

सिरोही में करीब एक साल रूकने के बाद फिर स्थानान्तरण जालोर सब डिवीजन में हो गया था। जालोर में श्री मनोहरलाल जी जिला कलेक्टर की बड़ी मेहरबानी रही। जालोर में तत्कालीन अधिशाषी अभियन्ता का भी विशेष योगदान रहा कि उन्होंने मुझे प्रमोशन के पूर्व दायित्व अधिशाषी अभियन्ता कार्यालय का भार भी मेरे ऊपर डाल दिया था।

 

सन् 1985 में जालोर मे श्रीमान् बूटासिंह जी एम.पी. का चुनाव होना था। तत्कालीन कलेक्टर ने मुझे सहायक अभियन्ता के पद पर रहते हुए कलेक्टर की पावर दे दी थी. तथा सभी दुसरे विभागों के अधिशाषी अभियन्ताओं को निर्देशित किया गया था कि वे हैडक्वार्टर छोड़ने से पूर्व मेरे से आज्ञा लें। उसके बाद सन् 1985 में मेरा प्रमोशन अधिशाषी अभियन्ता विद्युत मण्डल चौमू, जिला- जयपुर हो गया था।

 

सन् 1985 से सन् 1990 तक मैं चौमू में कार्यरत रहा। चौमू जब जोइन की तो तत्कालीन अधीक्षण अभियन्ता श्री आर.के. सूद ने कहा तुम तीन-चार महीने भी यहाँ नहीं चल पाओगे, यह बहुत बदनाम डिवीजन है और हर साल यहाँ कनिष्ठ अभियन्ता या सहायक अभियन्ता सस्पेण्ड होते हैं और अधिशाषी अभियन्ता को चार्जशीट मिलती है। भगवान की कृपा से सवा चार साल का समय सफलतापूर्वक निकाला। जिसके लिये जिला कलेक्टर, अध्यक्ष विद्युत मंडल तथा मुख्य अभियन्ता ने लिखित में मेरे कार्यों की सराहना की। जैतपुर औद्योगिक क्षेत्र विकसित किया तथा विद्युतीकरण के बाद काफी औद्योगिक संस्थान के कनेक्शन दिये। चौमू खंड के सेवाकाल में मेरा बड़ा लडका अग्रवाल कॉलेज जयपुर में भर्ती हो गया था। तथा उसके रहने के लिये चौमू के मूल निवासी श्री रामपालजी शर्मा, जोबनेर बाग वालों से सम्पर्क किया। उन्होंने कहा, ‘फिलहाल इसे मेरे मकान में ही रख देते हैं। फिर इसके लिये किराये के कमरा में दूसरी जगह देख कर दिला दूंगा।” मैं जयपुर उनसे मिलता और आग्रह करता कि बाबूजी मेरे लड़के के लिये कमरा जल्दी देख लो, ये भरोसा देते रहते तथा लड़के के लिए एक कमरे में उनके पोते के साथ पढ़ने की व्यवस्था कर दी। आप ताजुब्ब करेंगे कि उन्होने मेरे बड़े पुत्र को अपने घर पर पोते के समान रखा और कहीं भी दूसरे मकान में किराये के लिये नहीं भेजा। न तो कोई किराया लिया तथा न भोजन पर कोई व्यय मेरे लड़को के ऊपर I उनका स्नेह रहा और आज तक है। धन्य है ऐसे जांगिड बन्धु श्री रामपालजी शर्मा ।

 

चौमू में पोस्टिंग रहते कर्मचारियों तथा जनता व कास्तकारो से पूरा सांमजस्य रहा। जिस वजह से सभी प्रधान तथा सभी विधायक भी हर मीटिंग में चौमू खंड के कार्यों की प्रशंसा करते सन् 1987 में चौमू के रामपुरा डाबडी 33/11 केवी सब स्टेशन पर श्री मदनलाल की पारीक के विद्युत दुर्घटना में मृत्यु हो गई। उसके दाह संस्कार में सभी सहायक अभियन्ताओं के साथ मैं भी शरीक हुआ। तब सरपंच रामपुरा डावडी ने बताया कि इसके परिवार में अब कोई कमाने वाला नहीं रहा, न इसके जमीन जायदाद है। अतः इसकी पत्नी सड़क पर भीख मांगने लगेगी।

 

सभी अभियंताओं ने उसी दिन फैसला लिया कि इसके परिवार को अर्थिक मदद दी जाये। सरपंच के मार्फत गांव में दी एक प्लॉट विधवा के नाम से खरीदा गया। स्टॉफ ने अपने वेतन से कटौती करवा कर उसके लिये मकान बनवाया तथा अध्यक्ष विद्युत मंडल ने उसकी पत्नी को चपरासी की नौकरी हमारी सिफारिश पर दे दी। करीब 80 हजार रूपये मृत्यु के क्षतिपूर्ति मुआवजा मिला तथा परिवार अब सुखी जीवन व्यतीत कर रहा है। विधवा का पुत्र सन् 2007 में आई.आई.टी. दिल्ली में पढ रहा था।

 

कर चौमू डिवीजन से स्थानान्तरण मैंने तत्कालीन अध्यक्ष विद्युत मण्डल से प्रार्थना करवाया था तथा जनवरी 1990 में विद्युत मंडल मुख्यालय में मैंने ड्युटी जॉइन करली थी। 

 

मई महीने में मेरे चौमू डिवीजन छोड़ने के बाद सभी सहायक अभियन्ता व अधिशाषी अभियन्ताओं को चार्जशीट मिली तथा अधीक्षण अभियन्ता को भी चार्जशीट से नवाजा गया। सभी सहायक अभियन्ताओं का स्थानान्तरण किया गया तथा तत्कालीन अधिशाषी अभियन्ता श्री आर.के. दीक्षित की मृत्यु ऑफिस में ही हो गई। उसके बाद जब मैं मई के अंतिम सप्ताह में तत्कालीन मुख्य अभियन्ता श्री एम.पी. व्यास से जयपुर मे मिला तो उन्होंने कहा आपने चौमू में चार साल सफलता से कैसे निकाल दिये यह मुझे बताओ? इस ढंग से चौमू डिवीजन का कार्य सफलतापूर्वक संपन्न हो गया।

 

सन् 1991 में अधिशाषी अभियन्ता फालना के पद पर स्थानान्तरण हुआ। उस साल परसराम महादेव मंदिर सादड़ी मंदिर का विद्युतीकरण सादड़ी से 7 किलोमीटर 11 के.वी. लाइन, 63 के.वी.एम. सब स्टेशन तथा 15 एल टी पोली का निर्माण सिर्फ 21 दिन में करवाया, जो कि एक रिकार्ड है। 

 

फालना में रहते समय श्री निम्बेश्वर महोदव मंदिर फालना सारणवास तीर्थ देसूरी के लिये वाल्टोज के सुधार कार्यक्रम किये गये।

 

दो बार फालना पोस्टिंग रही जब बाली क्षेत्र के विधायक श्री भैरू सिंह जी शेखावत मुख्यमंत्री थे, विधुत विभाग की फालना औद्योगिक क्षेत्र के उद्योगपतियों ने श्री पी.एन. भंडारी, अध्यक्ष के सामने मीटिंग में विद्युत मंडल फालना खण्ड की तारीफ की, उस दिन 220 केवी जी.एस.एस. बाली का उद्घाटन कार्यक्रम था।

 

फिर 1997 में सोजत डिवीजन में स्थानान्तरण हुआ तथा 30 जून 1999 को सेवानिवृत्ति हुई ।

 

नौकरी में जनता से सीधा संवाद बनाये रखा अपने अधीनस्थ सहायक अभियन्ता तथा कनिष्ठ अभियन्ताओं को हर समय यही सीख दिया करता था कि उपभोक्ताओं को बार-बार उनका कार्यालय बुलाकर परेशान मत करो। उनका काम आपके अधिकार क्षेत्र में न हो तो मेरे पास भेज दो। मैं पूरी कोशिश कर उनको संतुष्ट करता था या उनका मामला आगे भेज देता। इस वजह से मेरे कार्यकाल में जनता द्वारा पिटाई एवं दुर्व्यहार नहीं हुआ तथा आज भी जहाँ पोस्टिंग रही. जाता हूँ तो जनता से वहीं सम्मान मिलता है। विभाग की छवि उत्कृष्ट हो, ऐसा प्रयत्न हमेशा मेरे द्वारा रहा। जिस वजह से श्री. पी. एन भंडारी अध्यक्ष मेरे कार्य से पूर्ण संतुष्ट थे।

 

सेवानिवृत्ति के पश्चात् सन् 2010-11 में जोधपुर के सुभाष नगर कॉलोनी में मकान नं. 23भी निर्मित कर निवास शुरू कर दिया। भगवान की कृपा से दोनों लड़के होशियार व आज्ञाकारी है। खुशहाल बड़ा लडका जयपुर में एक ज्वैलरी फर्म में एक्सपोर्ट मैनेजर है तथा जयपुर में ही एक स्वयं का पलेट निर्मित कर अपने परिवार के साथ रहता है, वर्तमान में ज्वाइंट डायरेक्टर, NIFT कोलकाता । उमेश, छोटा लडका एक टेक्सटाइल फैक्ट्री में अमेरिका में जनरल मैनेजर है तथा दुनिया के दूसरे देशों के साथ एक्सपोर्ट का काम संभालता है। वह अपने परिवार के साथ पहले बैंकाक (थाईलैंड) तथा बाद में नोर्थ केरोलिना (उत्तरी अमेरिका) तथा अब ब्राजील में सेवारत है। मैं इसके पश्चात् श्री विश्वकर्मा जांगिड पंचायत जोधपुर से जुड़ा और शास्त्री नगर स्थित विश्वकर्मा पब्लिक स्कूल उसमें शुरू हुई, उसमें मुझे भी प्रबन्ध समिति में सदस्य लिया गया। जोधपुर में विश्वकर्मा जागिड कर्मचारी समिति वर्षों तक संरक्षक रहा जांगिड समाज के सेवानिवृत्त तथा सेवारत कर्मचारियों, अधिकारियों से जान पहचान हुई।

 

मेरे निवास स्थान सुभाषनगर से अशोक उद्यान महज 1.5 किलोमीटर की दूरी पर है। रोज सुबह ६ बजे घर से निकल कर पैदल अशोक उद्यान जाता हूँ तथा घूम कर तथा कसरत कर 7.30 बजे वापिस घर लौट आता हूँ यहाँ के कुछ घूमने वाले 55 व्यक्तियों ने “मुस्कान वरिष्ठ नागरिक परिवार” नाम से एक संस्था बनाई है जिस में भी सदस्य हूँ। महीने के प्रथम रविवार को शाम को 6 बजे अशोक उद्यान में ही मीटिंग होती है जिसमे विचारों का आदान-प्रदान तथा अल्पाहार की व्यवस्था होती है यह संस्था अशोक उद्यान में गर्मियों में जनता के लिये प्याऊ लगाती है।

 

सन् 2001 से जोधपुर में विद्युत मंडल सेवानिवृत्त अधिकारी सेवा संस्थान स्थापित किया गया, जिसमें हर दो साल बाद कार्यकारिणी सदस्यों का चुनाव होता है और पिछले 8 साल से मुझे उसी कार्यकारिणी का सदस्य रहने का मौका मिला।

 

कार्यकारिणी के सदस्य हर महीने के दूसरे रविवार को बारी-बारी से एक सदस्य के घर कार्यकारिणी की मीटिंग आयोजित करते है तथा फिर दोपहर के भोजन के साथ समापन होता है। होली, दिवाली, नये साल के मौके पर संस्था की साधारण सभा की मीटिंग तथा सपरिवार सदस्यों का स्नेह मिलने आयोजित किया जाता है तथा शाम को सह-भोज भी रखा जाता है।

 

सन् 2010-11 में कुछ प्रबुद्ध जागिड बन्धुओ का एक समूह जांगिड ब्राहमण मित्र मंडल तैयार किया गया है। बारी-बारी से महीनें के दूसरे या तीसरे रविवार को शाम 6 बजे एक सदस्य के घर मीटिंग आहूत की जाती है। फिर अल्पाहार के साथ मीटिंग समाप्त होती है। इससे एक दूसरे के साथ पारिवारिक सम्बन्ध व समस्या तथा समाज के सेवा के संकल्पों पर विचार विमर्श भी होता है।

 

जागिड मित्र मंडल के साथियो के नाम इस प्रकार है सर्व श्री भागीरथ शर्मा, डा. ज्योति स्वरूप शर्मा, रामचन्द्र जांगिड, सोहनलाल जांगिड, धर्मदेव शर्मा, मोतीलाल शर्मा, किशनलाल शर्मा, रामलाल जांगिड, डा. रासाराम सुधार, श्यामसुन्दर लदरेचा, डा. धर्मेन्द्र सुधार, रावल्लभ जांगिड, रामेश्वर जागिड, प्रहलादसहाय जांगिड, इन्द्रराज शर्मा, ज्योति स्वरूप शर्मा, सुमेरमल जांगिड, गिरधारीलाल जांगिड़, आदि /. इस तरह सेवा निवृति का समय व्यस्तता से बीत रहा है। भगवान का लाख लाख

 

शुक्रिया व वन्दन ।

 

-Er. Tarachand

 

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Introspection

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