कुछ दिल छूने वाले प्रसंग

कई वर्षों पूर्व की बात है। एक बार महात्मा गांधी को पोरबंदर में एक स्थान पर मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया था। महात्मा गांधी स्टेज पर पहुंचे और कार्यक्रम शुरु होने वाला था। महात्मा गांधी को दूर से भयंकर बदबू का अहसास हुआ। उन्होंने आयोजक से पूछा, यह बदबू कहां से आ रही है ? उसने बताया, तीन-चार दिन से हरिजन महिला नहीं आ रही है (उस समय गटर सीवरेज शुरू नहीं हुआ था)। अतः शौचालय से बदबू आ रही है। महात्मा गांधी ने कहा, चलो, पहले शौचालय साफ कर देते हैं फिर आराम से मीटिंग कर लेंगे, यह जान कर समूचा उपस्थित जनसमुदाय भौचक्का रह गया।

 

भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद जब विद्यार्थी थे, तब एक दिन एलएलबी अंतिम वर्ष की परीक्षा में बैठने गये। परीक्षा पेपर के ऊपर लिखा था, कोई दस में से छह प्रश्नों का उत्तर दें। बाबू राजेन्द्र प्रसाद इतने तीक्ष्ण बुद्धि के विद्यार्थी थे कि उन्होंने उसी तीन घंटे के समय में दसों प्रश्नों के उत्तर लिख दिये। फिर शुरू में शीर्षक रूप में लिखा, कृपया कोई भी छह प्रश्नों के उत्तर जांच लें।

 

डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम हमारे देश के राष्ट्रपति बने । उससे पहले वे प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के आणविक मामलों के सलाहकार रहे। उन्होंने नासा में अपनी सेवाएं दी और पोकरण परमाणु परीक्षण के इंचार्ज रहे। उस वक्त उन्होंने पोकरण फायरिंग फील्ड का निरीक्षण एक ग्रामीण किसान के कपड़े पहन कर इतनी गोपनीयता से किया कि न तो राज्य की या देश की राष्ट्रीय इंटेलीजेंस को ही क्या, अमेरिका की एफबीआई खुफिया एजेन्सी को भी भनक नहीं होने दी और पोकरण परमाणु विस्फोट करवा दिया और मिसाइलमैन बन गए। भारत की परमाणु शक्ति को उन्होंने ही ऊंचाई पर पहुंचाया।

 

माननीय कलाम का राष्ट्रपति कार्यकाल बहुत शानदार रहा। वह इतने सारे व उच्च विचार के धनी थे कि राष्ट्रपति भवन में प्रदेश के समय, अपने व्यक्तिगत सामान की दो अटैची लाये और अपना कार्यकाल पूरा होने के बाद राष्ट्रपति भवन के विदाई के बाद साथ में सिर्फ वही दो अटैची लेकर गये।

 

सदैव वंदनीय रामसुख दास जी महाराज जीवन का अधिकतम समय हरिद्वार में गुजरा। वे राजस्थान सहित अनेक प्रदेशों का भ्रमण करते और प्रवचन देते। उनके प्रवचन से तथा उनके द्वारा लिखित गोरखपुर से प्रकाशित पुस्तकों में पारिवारिक शांति व गृहस्थी जीवन में रहते हुए आध्यात्मिक ज्ञान से ओतप्रोत विचार हैं। उनकी खासियत यह थी कि वे अपने चरण-स्पर्श किसी को नहीं करने देते और न अपने स्वयं को पुजवाने की आज्ञा देते। वे कहते, मैं भगवान नहीं हूं, मैं तो आप जैसा ही सन्यासी जीवन जी रहा हूं। मैं भी ऊपर वाले प्रभु की भक्ति करता हूं और आप भी उसी का पूजन करे। उन्होंने कभी प्रवचन के समय या अन्य समय अपनी फोटो कैमरे से नहीं खींचने दी और दूरदर्शन के द्वारा प्रवचन पर सिर्फ उनका नाम प्रकाशित होता है, फोटो नहीं। कितने उच्च कोटि के महात्मा जांगिड समाज में हुए अतः हम गौरवान्वित है।

 

डॉ. समित शर्मा आईएएस जोधपुर में पिछले साल करीब 5 महीने संभागीय आयुक्त रहे और पूरे प्रशासन व्यवस्था को सुधार कर गतिमान कर दिया कि जोधपुर संभाग की जनता गद्गद् हो गई। उसके बाद उनका स्थानान्तरण जयपुर संभागीय आयुक्त पद पर हो गया। उन्होंने स्वास्थ्य विभाग में निदेशक रहते हुए जैविक दवाईयों का इस्तेमाल करवाया जो बहुत सस्ती है और राजस्थान में श्रीमान् अशोक गहलोत मुख्यमंत्री के पिछले साल में सभी सरकारी अस्पतालों में मुफ्त दवाईयां तथा रोज परीक्षण करवाया, जिसे तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने सराहा। उनके माता-पिता जोधपुर प्रवास में उनके साथ थे। एक पत्रकार ने एक दफा पूछा, क्या आप अपने माता-पिता को अपने साथ रखते हो? जवाब दिया, नहीं मैं माता-पिता को साथ नहीं रखता। वे मुझे मेरे पोस्टिंग स्थान पर साथ रखते है। कितना शानदार जवाब दिया डॉ. समित शर्मा जी ने। मैंने ऐसा पहली बार जिन्दगी में सुना है

 

-Er. Tarachand

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