नौकरी से साहित्यकार (बोध प्रसंग)

अगर मैं आपसे एक प्रश्न पूछूं कि क्या एक घर पर काम करने वाली नौकरानी जो झाड़ू पोछा तथा वर्तन साफ करने की काम करती है, कभी प्रतिष्ठित साहित्कार बन सकती है? आपका जवाब होगा- नहीं लेकिन गुडगाव(हरि) में रहने वाली 33 वर्षीय देवी लदार अपनी लगन, मेहनत तथा दृढ निश्चय से बड़ी से बढ़ी मुसीबतो को झेलते हुए अपने लक्ष्य तक पहुंच सकी है। पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले में जन्मी देवी हालदार को माँ बचपन में ही घर छोड़ कर चली गई थी। पिता ने दो और शादिया की और दिमाता के कहने पर साढ़े बारह साल की उम्र में ही इनकी उम्र से दुगनी उम्र के अनपढ़ युवक से शादी कर दी।

 

देवी हालदार को पढ़ने का बहुत शौक था, लेकिन वह सातवीं कक्षा तक पढ़ पाई शादी होते ही  13 वर्ष की उम्र में एक बच्चे की माँ बन गई। समय आगे बढ़ा और तीसरा बच्चा होते ही बिना पति को बताये अपना परिवार नियोजन करवा दिया। इस तरह

 

खेलने-कूदने की उम्र में ही हालदार को अपने बच्चे पालने पड़े और अपनी इच्छा से किसी पड़ोनसन से इसके बोलने जैसी मामूली बात पर पति के लात घूंसे और गालिया सुननी पड़ी।

 

एक बार यह अपने बचपन के दोस्त के घर पूजा में गई थी, पति ने यहां आकर उसके बाल खींचकर गाली-गलीच शुरु कर दी। इस अपमान से देवी इतनी आहत हुई कि फिर अपने घर वापिस नहीं लौटी। वहीं से सीधे अपने मायके चली गई और अपने बच्चों को भी यही बुलवा लिया। अपने पिता से बेबी हालदार ने साफ कह दिया कि वहां अपने पैरों पर खुद खड़ी होगी और बच्चों को पढ़ाएगी। पिता ने जब वापिस जाने के लिए जोर दिया तो वे अपने तीनों बच्चों को लेकर अनजाने रास्ते पर निकल पड़ी। फरीदाबाद में अपनी भाभियों के मुह बनाने पर देवी हालदार ने बच्चों के साथ एक घर में नौकरानी का काम किया। कुछ दिनों बाद उन्हें एक दूसरे घर में काम मिल गया। उस घर में काम काफी कम था. इस घर मे ढेर सारी किताबों को निकाल कर वह उलट-पलट रही थी, तो मालिक ने उसे देख लिया। किताबों में उसकी रूचि जानकर मालिक ने किताबें ले जाने की अनुमति दे दी तथा एक पेज रोज लिखने को कहा। वह अपने अनुभव कागज पर मालिक का काम समझ कर लिखने लगी।

 

शुरू में भाषा की गलतियां गड़बड़ वाक्य होते थे, लेकिन धीरे-धीरे उसका हाथ खुलता गया, जब एक भाग लिख दिया तो मालिक ने उसे प्रकाशन के लिए साक्षात्कार नाम पत्रिका में भेज दिया और छप गया और पाठकों ने खूब पसन्द किया अपना नाम पत्रिका में देख कर हालदार की हिम्मत बढ़ी। यह बचपन से लेकर अब तक के अनुभव एक लेखानी तटस्थता पूर्वक लिखने लगी। वे अनुभव “आलो आधार (प्रकाश और अंधकार) बंगाल में लिखी मुक्तक पाठकों के सामने है। इस पुस्तक का अनुवाद अंग्रेजी. हिन्दी, मराठी में हुआ और वह लेखिका अब सर्वाधिक पुस्तकों की बिक्री की श्रेणी में आ खड़ी हुई है। उनकी छिपी प्रतिभा को पहचानने वाले मालिक विख्यात प्रेमचन्द मुंशी के नाती प्रबोध कुमार है।

 

देबी हालदार नौकरी के साथ बच्चों को भी स्कूलों में भेजकर पढ़ा रही है तथा अपनी कमाई का पैसा खुद पर खर्च न कर. बच्ची की पढ़ाई पर खर्च कर रही है। मकान मालिक ने ऊपरी मंजिल पर उसे परिवार सहित रहने को दिया है। बेबी हालदार को भिन्न साहित्यिक संस्थाये संगोष्ठियों में बुलाती रहती है और उसे पुस्तक विमोचन करवाने पर सम्मानित करती है। अनेक पत्रिकाएं उनके लेख प्रकाशित करती रहती है। अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर उनका साक्षात्कार दूरदर्शन पर लिया जाता है लेकिन इतना सम्मान पाकर भी बेबी हालदार ने अपने मालिक व संरक्षक के घर काम करना नहीं छोड़ा है। धन्यवाद की पात्रा है बेबी हालदार

 

-Er. Tarachand

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From a Worker to a Writer (Bodh Prasang)

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