एक भाई की दूसरे भाई से मेरे एक परिचित परिवार में बड़े ‘भाई साहब श्री वीरेन्द्र जी एयरफोर्स से एयर मार्शल पद से सेवानिवृत हैं और जोधपुर शहर में निवास करते हैं। छोटे भाई साहब मिलिट्री में ब्रिगेडियर पद से रिटायर्ड हुए हैं तथा जोधपुर से 100 किलोमीटर दूर पैतृक गाँव में निवास करते हैं। छोटे भाई साहब श्री सुरेन्द्र जी की धर्मपत्नी का स्वर्गवास हुए काफी समय बीत चुका है। सुरेन्द्र जी को जब भी इच्छा होती या बड़े भाई साहब टेलीफोन से सूचना देकर बुला लेते और फिर दोनों भाईयों में गपशप का कार्यक्रम जोधपुर में चलता रहता। इस तरह दोनों भाईयों में अटूट प्रेम है। बड़े भाई साहब चाहते , छोटा भाई ज्यादा से ज्यादा समय जोधपुर में उनके साथ रहे, लेकिन छोटे भाई को जमीन जायदाद संभालने तथा गाँव वालों से सम्पर्क रखने के लिए गाँव में ही रहने की इच्छा रहती।
एक बार छोटे भाई जोधपुर से गाँव के लिए रवाना हुए और दो घंटे बाद बड़े भाई का फोन आ गया। पूछा तुम गाँव पहुँच गए क्या? छोटे भाई ने कहा मैं अभी पहुँचा हूँ और अब घर का ताला खोल रहा है। बड़े भाई ने पूछा अब वापस जोधपुर कब आ रहे हो? देखी आपने एक भाई की दूसरे भाई से रिश्तेदारी।
पुत्रवधु की ससुर से मेरे एक साधी विद्युत विभाग से सेवानिवृत्त अधिशाषी अभियन्ता हैं और जोधपुर में ही निवास करते हैं। उनकी धर्मपत्नी का स्वर्गवास दस वर्ष पूर्व हो चुका है। उनके बड़े पुत्र का देहावसान तीन वर्ष पूर्व हो चुका है। छोटा बेटा व बहु डॉक्टर सरकारी नौकरी की वजह से सरकारी क्वार्टर में रहते हैं। जैसे वृद्धावस्था बढ़ती गई उन्होंने सोचा कि मेरे सामने ही दोनों बेटों को मेरी संपत्ति बाँट दूं। इसलिए उन्होंने पॉश कॉलोनी में अपने बंगले को बेच दिया तथा बेटों व बेटियों में सम्पत्ति का बंटवारा कर दिया और छोटे लड़के की पुत्रवधु व दो पोतों के लिए शहर से बाहर की कॉलोनी में बड़ा मकान खरीद लिया तथा खुद विधवा बहु के साथ रहने लग गए। अस्सी का दशक पूर्ण करने के बाद शरीर में शिथिलता आने लगी और बीमारियों ने घेर लिया। मैं उन्हें संभालने जाता रहता हूँ। एक दिन मैं उनके घर पहुँचा तो पुत्रवधु ने कहा आप बैठिए मैं पापाजी को खाना खिला देती हूँ। मेरे सामने ही ससुर को पलंग पर सहारा देकर बैठा दिया और पीछे से पैर से सहारा देकर, एक हाथ में थाली तथा दूसरे हाथ में रोटी का कौर खिलाने लगी।
मेरे साथी कमजोरी की वजह से आँख भी नहीं खोल पा रहे थे और याददाश्त भी कमजोर हो गई है। खाना खिलाने के बाद वह ससुरजी के सिर पर ऊंगलियाँ सहलाने लगी जैसे एक माँ बच्चे को स्नान करने के बाद सिर सहलाती है। मैंने कल्पना की मेरे साथी की माताजी की मृत्यु के बाद उन्हीं के घर पुत्रवधु के रूप में पुनः जन्म हुआ है। देखा आपने पुत्रवधु की ससुर से रिश्तेदारी।
बेटे की पिताजी से: मेरे जान पहचान वाले राजस्थान सरकार में उच्च प्रशासनिक अधिकारी हैं। उनका छोटे गाँव में एक शिक्षक के घर पर जन्म हुआ। फिर अपनी मेहनत से भारतीय प्रशासनिक सेवा में चयन हुआ। उनकी शादी भी उच्च प्रशासनिक अधिकारी के साथ हुई, जो कि शायद उच्च घराने की लगती थी। वे अपने शिक्षक ससुर से मिलने गाँव नहीं जाती थी, लेकिन भाई साहब पिताजी को संभालने गाँव दौरा करते रहते थे। वे गुरुदेव समय के साथ पूर्ण वृद्धावस्था में पहुँचे तो बेटे ने कहा आपकी आखिरी इच्छा क्या है? पिताजी ने कहा-मैं चाहता हूँ कि मैं हरिद्वार में रहूँ और वहीं अपना प्राण त्यागूं । वह प्रशासनिक अधिकारी पिताजी को हरिद्वार ले गए। तीन-चार महिने उनकी पूरी सेवा की, यहाँ तक कि पिताजी के मल-मूत्र से गंदे कपड़े खुद धोते थे और देह त्यागने के पहले पिताजी खूब आशीष देते गए। देखी आपने बेटे की पिताजी से रिश्तेदारी।
-Er. Tarachand
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