आज मैं आपको 80 वर्ष पूर्व के मेरे गाँव वरकाणा, जिला पाली का दृश्य दिखा रहा हूँ जहाँ मेरा विक्रम संवत् 1996 के अकाल के समय जन्म हुआ था। छोटा गाँव 150-200 घरों की आबादी मेरे माता-पिता बताते थे कि उस साल सदी का भयंकर अकाल था। बरसात दो साल से नहीं हो रहा अनाज उत्पादन की कमी से धान की भी कमी थी।
बचपन में मेरे चेचक की भयंकर बीमारी हो गई थी, उस समय प्रवेश हो गया। करीब 30 मील दूरतगढ़ कस्बा में हॉस्पिटल था, जहाँ मुझे डॉक्टर को दिखाने के लिए बैलगाड़ी में बैठाकर ले जाया करते थे। भगवान की कृपा से मैं बच गया।
छ वर्ष की आयु में मुझे मेरे चाचाजी ने पास के गाँव बिजोवा में प्राथमिक विद्यालय में प्रवेश करवाया, क्योंकि मेरे गाँव में जैन समाज द्वारा संचालित हाई स्कूल छठी कक्षा से पढ़ाई संचालित होती थी। बिजोवा गाँव मेरे गाँव से पानी का नाला रास्ता पार कर स्कूल पहुंचते स्कूल के पुराने अध्यापक का प्रेम देखिए। मैं उनसे दिल्ली में थे। पाचवी कक्षा उत्तीर्ण कर खुद के गाँव में छठी कक्षा में प्रवेश लिया 15 वर्ष पश्चात् एक मेरे दोस्त की बहिन की शादी में मिला। जहाँ वे तथा हाई स्कूल तक वहाँ पढ़ाई की।
वर पक्ष की तरफ से बाराती थे। मैंने उन्हें पहचान लिया और नमस्कार गाँव के पास एक सुकड़ी नदी है, जो उस समय बरसात में शुरू होकर चार-पाँच महीने बहती थी। अत: कपड़े धोने तथा स्नान का वहीं नदी तट पर होता था। स्कूल के अधीन एक रहट था, बाकी समय वहाँ स्नान तथा कपड़े धोने का कार्य स्वयं करते थे, ऐसा गुरुजनों ने सिखाया था।
गाँव में एक प्रसिद्ध जैन मन्दिर है जहाँ जैन साहब की पेटी है को नसीब हुआ। भगवान का लाख लाख शुक्रिया।। बचपन से ही हम जैन यात्रियों को बस द्वारा यात्रा करते देखते थे। पढ़ाई के दौरान शुरू से होल्डर, दवात का इस्तेमाल होता था, स्वाही पर से दवात में भरकर ले जाते थे। स्कूल में में स्काउटिंग से जुड़ा उससे हाथ से खाना बनाना, सिम्लेलिंग, प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा सीखी और सन् 1956 में अखिल भारतीय स्काउट गाईड की दूसरी जम्बरी जयपुर में आयोजित हुई, उसमें भाग लिया था।
अध्यापकों का स्नेह माता-पिता की भांति होता था। उस समय पिताजी की आर्थिक स्थिति ज्यादा अच्छी नहीं थी, अतः अध्यापक मुझे एक-एक किताब उपलब्ध करा देते थे। गाँव में लालटेन तथा दीये के प्रकाश में पढ़ाई करते। पिताजी किसानों के खेती के औजार बनाते, अतः स वगैरह उनके खेत से ले आता और किसान मजदूरी की जगह अनाज देते थे, जो कि साल भर तक चलता। गाँव से रेलवे स्टेशन पाँच किलोमीटर दूर है, जहाँ पैदल जाकर किराने, कॉपी, स्टेशनरी वगैरह खरीद कर लाते स्कूल बोर्डिंग के मैनेजर जोधपुर के स्व. श्री सम्पतराजजी भाली थी, जिन्होंने मुझे पुत्र स्नेह दिया और समय-समय पर मार्गदर्शन देते रहते। आपको ता होगा कि आठवीं कक्षा में पढ़ते समय में यह सोचा करता कि डॉक्टर, इंजीनियर जैन समाज वाले ही बन सकते थे, क्योंकि उस समय अजैन तो आठवी पास कर सरकारी नौकरी में | लग जाते, अन्य अपने पैतृक संभालते।
लेकिन प्रभु कृपा से मुझे अच्छे शिक्षकों ने प्रोत्साहित किया और आगे पढ़ने के लिए वातावरण बनाया, सिखाया और उसी वजह से बाद में जोधपुर इंजीनियरिंग कॉलेज में बचपन के समय गाँव में हर ची सुद्ध मिलती थी। पानी कुओं से भरकर ले आते। चारों तरफ हरियाली दिखती। उस समय पर एक दो कमरों वाले खपरैल से ढके हुए होते थे। अतः बुजुर्ग आदमी घर की गली में खाट लगाकर सोते। चोरी झारी का कोई केस नहीं देखा। गाँव के ठाकुर ही उस समय के न्यायाधिपति होते थे, जो लोगों के आपसी झगड़ों का फैसला करते।
की और उनको अपना परिचय दिया, तो वे इतने खुश हुए कि मुझे दूसरे दिन उनके रामरस हायर सैकण्डरी स्कूल नं. 3 में बुलाया और कक्षा में उनके विद्यार्थियों से मिलवाया तथा मुझे फिर अपने घर ले गए जहाँ उन्होंने मेरा परिचय परिवार वालों को दिया, अब वो प्रेम कहाँ ? यह बचपन का आनन्द ग्रामीण पृष्ठभूमि वाले मेरे जैसे व्यक्ति
-Er. Tarachand
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