बचपन में मेरे गांव के स्कूल में एक जोधपुर शहर के अध्यापक जोकि उस समय एम. कॉम. एल. एल. बी. की शिक्षा प्राप्त कर चुके थे, अध्यापन कार्य के लिए नियुक्त हुए। उनकी धर्मपत्नी जोधपुर के ख्याति प्राप्त डॉक्टर साहब की पुत्री थी। शहर से आये हुए दम्पति को छः दशक पूर्व गांव की जिन्दगी कैसी लगी होगी, उसका अन्दाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उनके क्वार्टर में शौचालय तक नहीं था और लालटेन की रोशनी से रात गुजारनी पड़ती थी।
उनके तीन पुत्र हुए और उनकी शिक्षा-दीक्षा हमारे गांव में ही हुई । गुरु माता जी के जीवन की खास बात यह रही कि उन्होंने अपने शादी के बाद डॉक्टर साहब की पुत्री न समझकर गुरुदेव की पत्नी के रूप में हमेशा प्रदर्शित किया। गुरूजी की तनखाह के मुताबिक अपना घर खर्च चलाया तथा स्वयं सादगी की जिन्दगी जीने में ही आनन्द लिया। बचपन में हम देखते थे कि उन्होंने अपने बच्चों को सब काम हाथ से करवाये खुद के कपड़े धोना तथा खाने के बर्तन साफ करने की जिम्मेदारी बच्चों पर थी। उनके मार्गदर्शन में तीनों बच्चों ने कालांतर में उच्च शिक्षा प्राप्त की, जिसकी वजह से एक बेटा हायर सेकेण्डरी में प्रिंसीपल, दूसरा लड़का बैंगलोर इसरो मे वरिष्ठ वैज्ञानिक तथा तीसरा लड़का डॉक्टर वरिष्ठ विशेषज्ञ मेडीसिन के पद पर सेवारत है। गुरुमाता जी जब भी जोधपुर आती अपने पिता से दवाईया ले आती और गांव में कोई भी बीमार होता, उसको निःशुल्क दवाईया वितरित करती ।
गांव में उनका बहुत सम्मान था और सेवानिवृत्ति के बाद गांव में गुरु देव को सरपंच का पद भी सौंपा गया। उस परिवार ने गांव के बच्चों को भी उचित मार्गदर्शन दिया, ताकि वे भी स्कूल की शिक्षा के बाद शहर जाकर उच्च शिक्षा प्राप्त कर सके तथा सेवा निवृत्ति के बाद भी अपने पोते पोतियों को अपने यहां रखकर उच्च शिक्षा प्रदान करायी तथा संस्कारित बनाया।
उनकी नौकरी शुरू करने के बाद अन्य गुरूदेव उसी गांव में शिक्षक के रूप में नियुक्त हुए जो कि रानी स्टेशन (गांव से 15 कि.मी. दूर) के रहने वाले थे तथा उनकी पत्नी जोधपुर से थी । दूसरी गुरूमाता जी के पिताजी तत्कालीन जोधपुर महाराजा के यहा उच्च पद पर नियुक्त थे और गुरु माताजी का भाई पांच दशक पूर्व कलकत्ता में चार्टड एकाउण्टेट था।
दूसरी गुरुमाता जी ने हमेशा अपने को जोधपुर के बड़े घर की पुत्री समझा और पति देव को मामूली गाव का आदमी। पति से झगड़ा करना, उन्हें हम बच्चों के सामने गाली-गलौच करना, उनके घर में इस्त्री कराये गुरुजी के कपड़ों को मिट्टी में डालना, रोज की उनकी दिनचर्या हो गयी थी। गुरूजी ने नौकरी करते समय खूब धीरज रखा और पत्नी के क्रूर व्यवहार को सहन करते रहे। वर्तमान में गुरूजी की पत्नी गांव में अलग मकान लेकर जीवन जी रही है। उनकी पुत्री का ससुराल में 2 साल रहने के बाद तलाक हो गया तथा यह भी गुरुमाता जी से अलग रह कर एकाकी जीवन व्यतीत कर रही है और सेवानिवृत्ति के बाद गुरुजी भी पक्षाघात के मरीज बन चुके है।
यह प्रसंग जन महिलाओं के लिए नई दिशा देगा जो कि अपने ससुराल में रह कर पीहर का गुणगान करती रहती है और पति व ससुर को हीन दृष्टि से देखती है तथा घर में असन्तोष का वातावरण बनाकर रखती है। जांगिड समाज में भी ऐसे ही तलाक के मामले बढ़ रहे हैं।
परिवार के वरण को शांत व सुखद बनाने के लिए निरभिमानिता एवं सहिष्णुता का जीवन मे क्या महत्व है उपरोक्त दोन घटना यह स्पष्ट करती है एक सौम्य व्यवहार रखने में प्रेरणा देती है।
-Er. Tarachand
To read this story in English click here: