चीन के महान दार्शनिक कम्पयूशियस एक दिन एंकात में बैठे चिंतन कर रहे थे। तभी उधर से से चीन के सम्राट गुजरे अपनी धुन में मान कन्फ्यूशियस ने सम्राट की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया। यह बात सम्राट को काफी नागवार लगी। उन्होंने कन्फ्यूशियस से पूछा- तुम कौन हो ? कन्फ्यूशियस ने उत्तर दिया- मैं सम्राट हूं। सम्राट को उसके उत्तर पर | गुस्सा आया और ये बोले सम्राट तो मैं हूं देखो मेरे पास सेना है, सेवक है तथा धन है तुम्हारे पास तो इनमें से कुछ भी नहीं लगता। फिर तुम सम्राट कैसे हो ?.
कन्फ्यूशियस सम्राट की बात सुनकर मुस्कराया और बोला- देखिये सेना उसको चाहिये जिसके शत्रु हो, परन्तु मेरा कोई शत्रु नहीं है, इसलिए मुझे सेना की आवश्यकता नहीं सेवक उसको चाहिये जो आलसी होता है और काम स्वयं नहीं कर पाता। मैंन आलसी हूँ, न कामचोर, अतः मुझे सेवक की आवश्यकता नहीं। धन वैभव उसको चाहिये जो दरिद्र हो। मैं दरिद्र नहीं हूँ मेरे पास संतोष का घन है। अतः आप ही सोचिये की असल में सम्राट कौन है। आप या मैं ? सम्राट निरूर से गये।
-Er. Tarachand
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