बोध-प्रसंग 23

करीब 35 वर्ष पूर्व जोधपुर शहर में सोहनजी व मोहनजी नाम के दो व्यक्ति साथ रहते थे, जो रिश्तेदार भी थे, उनके बीच में कुछ ऐसी घटना घटी कि दोनों एक दूसरे के विरोधी बन गये तथा रामा सामा भी बंद हो गया। इत्तफाक से दोनों मेरे बहुत करीबी थे। जब मोहनजी मुझसे मिलते तो सोहनजी की बुराई करते और इसी तरह जब कभी सोहनजी को मुझसे मिलना होता. तो चर्चा में मोहनजी की बुराई अवश्य सम्मिलित होती इस तरह दोनों महानुभावों की शिकायते सुनते-सुनते काफी वर्ष निकल गये।

 

एक बार मैंने सोचा कि क्यों न दोनों को एक ही टेबल पर बैठा कर साथ खाना खिलाया जाये ताकि नजदीकी बढ़ सके। इसके लिये मैंने दोनों से अलग-अलग निवेदन किया कि आज शाम को मेरे घर पर आपके साथ शाम को 8 बजे खाना खाने का विचार है अतः आप सही समय पर मेरे घर पर पधार जावे क्यों कि रत्रि को 9.30 बजे मुझे घर से पॉवर हाउस में रात्रि ड्यूटी पर जाना है।

 

दोनों महानुभाव ठीक 8 बजे शाम को मेरे मकान पर पहुँच गये। दोनों एक दूसरे को देखकर आश्चर्यचकित थे क्योंकि मैंने दोनों के साथ कार्यक्रम करने का पूर्व में नहीं बताया था। श्रीमतीजी ने खाना तैयार कर रखा था । तुरन्त ही तीनों को एक ही टेबल पर खाना परोसा गया और मोहनजी व सोहनजी से मुझसे ही बातें होती रही। उसके बाद मैंने सधन्यवाद विदा किया। उस एक दिन के कार्यक्रम में शरीक होने के बाद मोहनजी व सोहनजी के बीच कटुता कमतर होती गई और पिछले साल की तो यह हालत रही कि मोहनजी अपने लड़के के ससुराल में सोहनजी को तो ले गये, लेकिन मुझे न्यौता देना ही भूल गये ।

 

इस तरह एक मेरा छोटा प्रयास कितना सफल रहा, यह समय-समय पर सोहनजी मुझसे कहते हुए खुशी का इजहार करते हैं।

 

-Er. Tarachand

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Perception Context 23

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