इस प्रसंग को पढ़ते समय आपको आश्चर्य होगा कि क्या ऐसा भी संभव है ? राजस्थान के झुंझनू जिले के चिड़ावा कस्बे में एक जांगिड परिवार में आज से 70 वर्ष पूर्व देवीलाल नाम के शिशु का जन्म हुआ। बचपन में पढ़ाई शुरू की. लेकिन जब वह चौथी कक्षा में पढ़ रहा था, तभी उनकी माताजी का देहावसान हो गया। पिताजी ने दूसरा विवाह कर लिया और जब देवीलाल चौथी कक्षा पास कर चुका था विमाता के आने के बाद देवीलाल पर मुसीबतों का पहाड़ टूटना शुरू हुआ। उसकी पढ़ाई बंद कर दी गई और लकड़ी के काम सीखने के लिए मजदूरी में भेज दिया। बालक को पढ़ने की बहुत इच्छा थी। अतः दिन भर लकड़ी का काम करने के बाद शाम को घर पर पढ़ाई करने का निश्चय किया। सहपाठियों से किताबें लेकर तथा कॉपी पेंसिल खरीद कर पढ़ाई घर पर शुरू की। बिनाता को यह गवारा नहीं था। वह देवीलाल की कॉपी व पुस्तकों को फाड़ देती। उसके साथी अगर पढ़ाई की चर्चा के लिए घर आते, माताजी उनसे लड़ पड़ती, पिताजी खामोश रह कर सब देखते रहते, लेकिन बालक के लिए कुछ नहीं कर सके। बालक ने हार नहीं मानी और विकट परिस्थितियों में भी पढ़ाई चालू रखी। अपने पूर्व के चौथी कक्षा के प्रधानाध्यपक जी के पास गया और निवेदन किया कि वे मुझे चौथी पास का प्रमाण पत्र देवे ताकि मैं दसवी कक्षा की परीक्षा में प्राइवेट विद्यार्थी के रूप में परीक्षा दे सकूं। प्रधानाध्यापक जी हंसने लगे और कहा कि तू दसवी कक्षा कैसे पास कर सकता है जबकि बहुत से विद्यार्थी लगातार स्कूल में पढ़ाई करने के बाद भी उत्तीर्ण नहीं हो पाते। खैर चौथी कक्षा का प्रमाण-पत्र लेकर जब वह बालक धोती पहना हुआ मजदूरी के वेस से रवाना हुआ तो सभी अट्ठहास करने लगे।
उस विद्यार्थी ने दसवी पास की। फिर प्राइवेट विद्यार्थी के रूप में इन्टर पास किया और उनकी शादी हो गई। अब वह एक स्कूल में नौकरी करने लगे और किराये के मकान में रहकर आगे की पढ़ाई जारी रखी। फिर बी.ए. पास किया और कुछ वर्षों बाद उनकी पत्नी को टी.बी. की बीमारी हो गई। काफी लम्बा ईलाज करवाया, साथ ही नौकरी जारी रखी और आगे की पढ़ाई भी पत्नी को टी.बी. की बीमारी के कारण नजदीक रिश्तेदार जिनके यहां किराये के कमरे में देवीलाल रहते थे. उन्हें अपने घर में रखने से मना कर दिया। लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और आगे की पढ़ाई की सोपान कर चढ़ते हुए तीन विषयों में एमए तथा पी. एच. डी की डिग्रियां हासिल की और कॉलेज में प्रोफेसर के पद पर सेवायें देते हुए अब सेवानिवृत्त है। यह प्रसंग कहानी की कल्पना न होकर हकीकत है।
-Er. Tarachand