मेरे एक साथी केन्द्रीय सरकार के प्रतिष्ठान में सेवारत थे और उनकी पत्नी शिक्षा विभाग में प्रधानाध्यापिका की नौकरी करती थी। दस वर्ष पूर्व उनका पुत्र विदेश में नौकरी करने चला गया। माता-पिता ने अपने पुत्र के विवाह के लिए लड़की को पसन्द कर लिया, लेकिन उनका लड़का विवाह के लिए तैयार नहीं हो रहा था, कारण उसके नौकरी के प्रावधानों के अन्तर्गत उसे तीन साल तक परिवार लाने की उस देश में इजाजत नहीं थी। लड़की के माता-पिता को बताया गया कि हमारा लड़का अब शादी कर लेगा, लेकिन आपकी पुत्री अगले तीन साल तक विदेश में नहीं जा सकेगी और उसे जोधपुर में ही रहना पड़ेगा
घर बार देखकर लड़की के माता- पिता ने उपरोक्त शर्त को मंजूर कर लिया और फिर उनकी शादी धूमधाम से हो गई। जैसा कि अधिकतर होता है. इस तरह के मामले में लड़की अधिक समय अपने पीहर ही रहना पसंद करती है। लेकिन उस वधू ने अपनी सासुजी से कहा कि आप व पापाजी दोनों ही सरकारी नौकरी में कार्यरत है और सुबह जल्दी उठकर तैयारी की भाग दौड़ होती है। अतः मैं आप के साथ ही रहूंगी और आप के गृह कार्य में हाथ बटाऊंगी, ताकि आप आराम से रहे और मेरा भी समय अच्छा व्यतीत से जायेगा। भगवान ने मुझे आपकी सेवा का इस समय अच्छा मौका दिया है, जोकि मेरे विदेश जाने के बाद मुमकिन नहीं होगा।
पुत्रवधू को सासु जी यदाकदा पीहर जाने को कहती तो वो चार-पांच रोज बाद वापिस लौट आती और कहती कि मेरा तो आपके बिना वहां मन ही नहीं लगता। जिस रात ससुराल आती तो सासुजी को रात्रि में रिश्तेदारों और वहां के मौहल्ले के सब समाचार सुनाकर ही नींद लेती। तीन वर्ष कैसे गुजरे, न तो बहू को पता चला, न ही माता-पिता को बच्चे से दूरी का अहसास हुआ।
बहू ससुराल में दूध में शक्कर की तरह घुलमिल गई। उसके बाद उनका पुत्र बहु को विदेश ले गया। करीब दो वर्ष बाद उनकी पुत्रवधू गर्भवती हो गयी और डिलीवरी का समय आ गया। पुत्र वधू ने सासु जी को कहा आप विदेश आ सके तो मुझे सुविधा रहेगी।
अन्यथा मुझे ये जोधपुर छोड़ने आएंगे। उस समय हमारे साथी तो केन्द्रीय सेवा से निवृत्त हो चुके थे, लेकिन उनकी पत्नी के सेवानिवृति में करीब दो साल बाकी थे दोनों पति-पत्नी ने विचार विमर्श किया और इर नतीजे पर पहुंचे कि मुझे राजकीय सेवा से स्वैच्छिक सेवानिवृति ले लेनी चाहिए, क्योकि मेरी बेटी (यानी पुत्रवधू) को यही इच्छा है। फिर दोनों पति-पत्नी नौकरी छोड़ने के बाद विदेश चले गए और आठ माह बाद जोधपुर लौटने पर मुझे उपरोक्त वृतान्त बताया। यह प्रसंग उन नव नवली बहुओं के लिए मार्ग दर्शन करेगा, जो सासूजी से सही सामजस्य नहीं बैठा रही है और ससुराल में परेशान रह रही है। इसमें मूल बात यह है कि जब विवाह के पश्चात लड़की अपने पीहर से ससुराल आती है, तब से उसका घर ।
ससुराल हो जाता है और पीहर बाबुल का घर इस धारणा को अंगीकार करने वाली बहुओं का ससुराल में जीवन स्वाभाविक, सहज एवं सुखमय हो जाता है
-Er. Tarachand
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