बोध प्रसंग – 8

जोधपुर शहर में श्रीमान भगवानसिंह परिहार ने बीस वर्ष पूर्व “लवकुश गृह चौपासनी हाउसिंग बोर्ड में स्थापना की थी जिसमे वे नवजात शिशु गृहण किये जाते हैं, जिन्हें उनकी माताएं गैर कानूनी तौर पर जन्म देकर कूड़े करकट या सड़क पर फेंक दिया करती थी और जानवर उन्हें नोच-नोच कर खा जाया करते थे । उन्हीं शिशुओं की परवरिश का दायित्व उठाया, प्रमुख उद्योगपति श्री परिहार ने। उन्होंने उस लवकुश गृह के मुख्य द्वार पर एक पालणा बना रखा है. जिसमें ऐसी अनैतिक सन्तान डाल दी जाती है तो भवन में अपने आप घंटी बजती है और वहां की सेविकाएं आकर उसे अन्दर ले जाती है और फिर शुरू होती है, उस फेंके गए बच्चे की नई जिन्दगी। इन बीस वर्षों में काफ़ी बच्चे बच्चियों की शिक्षा दीक्षा सम्पन्न हो रही है तथा तरुण बालिकाओं की उच्च वर्ग में शादियां भी श्री परिहार द्वारा सम्पन्न कराई गई है। अब इस संस्था ने एक “आस्था” नाम से वरिष्ठ नागरिक सदन भी जोधपुर में स्थापित किया है, जहां बेसहारा, दुर्जुग एवं बूढ़े माँ-बाप रहते है, जिनकी औलाद परवरिश नहीं कर पाती या उन्हें तिरस्कृत करती है। दोनों संस्थाओं के संचालन में श्री भगवानसिंह जी के परिवार के हर सदस्य का सेवा के इस काम में अम् योगदान है।

 

मेरे एक परिचित एवं नजदीकी परिवार है जिनके लड़के की शादी के काफी वर्षों बाद कोई लड़का या लड़की नहीं हुई तो उन्होंने उपरोक्त लवकुश गृह से एक शिशु को अपने पोते के रूप में गोद ले लिया। उनका लड़का मुम्बई में अच्छी कम्पनी में नौकरी करता है। उसे शिशु का पालन-पोषण मुम्बई में हुआ और उम्र के हिसाब से शिक्षा दीक्षा की व्यवस्था चालू रही। अब वह शिशु 15 साल का बालक बन गया। एक दिन वह अपने पिताजी के साथ कार में जा रहा था, तब कार दुर्घटनाग्रस्त हो गई और उसके पिताजी को गंभीर चोटे आई। उसने हिम्मत के साथ मोबाईल पर उसके नजदीक रिश्तेदार को बुलाया और तुरन्त पास के हॉस्पीटल में ले जाकर इलाज शुरू करवाया। सब ठीक हो गया।

 

दादा-दादी के प्रति भी वह बहुत समर्पित है। पापा को कहता है कि दादा-दादी जी को मुम्बई बुलाओ। पिताजी कहते है कि दादा-दादी इतनी जल्दी वापस जोधपुर से मुम्बई नहीं आयेंगे तो वह पापा से जिद्द करता है कि आप दादा-दादी के आरक्षित टिकट भेज दें, मेरे लिए दादा-दादी जरूर आएंगे और होता भी ऐसा ही. 

 

इस प्रसंग ने इस धारणा को बदल दिया है कि खुद की कोख से पैदा हुए बच्चे ही माँ-बाप के प्रति वफादार होते है, गोद लिए उतने समर्पित या बफादार नहीं होते। अतः जिस दम्पति ने कोई पुत्र/पुत्री गोद ले रखा है/रखी है. समाज बन्धु उसे हतोत्साहित न करें तथा बच्चों को सरल एवं स्वाभाविक जीवन जीने का मार्ग प्रशस्त करें।

 

-Er. Tarachand

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Perception episode – 8

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