मामले ऐसे सुलझे

मेरे एक मित्र के तीन बेटे हैं। पहले सभी मां-बाप के साथ रहते थे। बाद में बेटों की शादियां हो गई और अपना-अपना धंधा संभालने लगे। कुछ वर्षों बाद दो वरिष्ठ पुत्रों ने स्वयं के मकान बना दिये और वे परिवार के साथ शहर में दूसरे स्थानों में निर्मित मकानों में रहने लग गये। माता-पिता अपने छोटे पुत्र के परिवार के साथ अपने पुराने मकान में जिन्दगी बसर करने लगे।

 

कालान्तर में एक दिन मित्र का बड़ा लड़का मुझे मिला और बताया कि अलग-अलग रहने के कारण पिताजी का प्रेम सबसे छोटे भाई के साथ ज्यादा है, हमारे वहां वे बहुत कम आते हैं। मैंने उसे सलाह दी कि तुम बाहर रहने वाले दोनों भाई महीने में एक या दो बार सुविधा अनुसार दोपहर के बनाये भोजन व बहू बच्चों समेत पिताजी के घर जाकर तीनों भाई अपने परिवार सहित माता-पिता के साथ बैठ कर खाना शुरू कर दो। लड़कों ने ऐसे कार्यक्रम शुरू किये, तो माता-पिता का प्रेम सभी के साथ पूर्ववत् हो गया। ऐसे मामला सुलझ गया।

 

दूसरे एक परिवार में धर्मपत्नी का निधन हो गया और उसके बाद पिताजी अकेले पुराने मकान में रहते रहे। उनके एक ही बेटा है और जो शहर के पॉश कॉलोनी में बने बंगले में परिवार के साथ रहता है। यह परिवार मेरी जान पहचान वाला है। एक दिन उनका वह लड़का मुझे बाजार में मिल गया। घर के हालचाल पूछे, तो उसने बताया कि माताजी के देहावसान के बाद पिताजी पुराने मकान में रहते हैं। मैंने उन्हें दो-तीन बार निवेदन किया कि आप हमारे साथ रहने के लिए आ जाये, ताकि आपका मन लगा रहे और खाने-पीने की व्यवस्था अच्छी हो जाए। लेकिन पिताजी कहते हैं कि पुराने मकान के मोह के कारण इसे छोड़ना नहीं चाहता हूं। मैंने लड़के को बताया कि तुम्हारे पिताजी इसलिए नहीं आ रहे हैं कि वह उनका घर है और जिन्दगी का काफी सफर उसी में गुजारा है। हो सकता है कि वे सोचते होंगे कि मैंने स्वयं के मकान को छोड़ कर लड़के के घर क्यों रहूं। मैंने आगे सलाह दी कि तुम्हारे नये घर में चार कमरे हैं, उसमें एक कमरा पिताजी के नाम आवंटित कर दो। उसमें एक पलंग व एक ताले चाबी वाली अलमारी रख दो और पिताजी को सौंप दो। पिताजी को कहना कि पन्द्रह दिन पुराने मकान में रहे और महीने के बाकी पन्द्रह दिन मेरे मकान के कमरा नंबर-3 (पिताजी को आवंटित) में निवास करे। लड़के ने ऐसे ही किया और पिताजी ने धीरे-धीरे लड़के के घर, समय के साथ रहना शुरू कर दिया।

 

इसी तरह तीसरे मित्र परिवार में माँ-बाप के साथ दो बेटे बहुओं के साथ रहते थे। कालान्तर में पिताजी का देहावसान हो गया। बाद में बड़े लड़के ने अलग कॉलोनी में मकान बना लिया और परिवार के साथ वहां निवास करने लगा। माताजी छोटे बेटे के परिवार के साथ शहर के पुराने मकान में समय व्यतीत कर रही है। बड़ा लड़का चाहता है कि माताजी उसके मकान में आकर रहे माताजी का वही पुराना वाला बहाना, मेरा तो पुराने वाले मकान में ही मन लगता है। उस लड़के को भी उपरोक्त वर्णित परिवार नं.-2 का फार्मूला बताया। उस लड़के ने एक कमरा माताजी का शयन कक्ष हेतु निर्धारित कर दिया और एक ताले चाबी वाली अलमारी उस कमरे में अलग से रख दी। धीरे-धीरे माताजी वहां जाने लगी और आधे कपड़े बड़े लड़के वाले घर में अपने कमरे में रख दिये ताकि उस घर से इस घर आने के लिए बार-बार कपड़े नहीं लाने पड़े। खबर है कि अब माताजी का अपने बड़े लड़के के घर अपने नामित कमरे में मन लग गया है। अब इच्छानुसार कभी उस घर कभी इस घर आनन्द से जीवन जी रही हैं। देखा आपने, कैसे मामले सुलझ गये।

 

-Er. Tarachand

To read this story in English click here:

How Matters Resolve

Leave a Reply