मृत्यु के बाद भी चेहरे पर मुस्कान

लेख शुरू करने से पहले मैं उस दिव्यात्मा को नमन करता हूँ, जिसके बारे में यह लेख लिखा जा रहा है कहते हैं कि मानव जीवन उसी का सार्थक व सफल माना जाता है, जिसके जन्म पर स्वयं जब प्रथमकर रोता है, तो परिवार वाले खुशी मनाते हैं और मृत्यु होने पर चेहरे पर मुस्कान रहती है। और शवयात्रा में सम्मिलित रिश्तेदार, साथीगण रोने जैसे हो जाते हैं। मैं बात कर रहा हूँ, मेरे साथी डॉ. गंगासिंह चौहान, एम.डी.की जो कि दो वर्ष पूर्व इस दुनिया को छोड़ चले, लेकिन उनकी यादें अब भी हजारों लोगों के दिल दिमाग में बस गई। उनका देहावसान होने के बाद उनका अंतिम संस्कार पाली जिलें के सादड़ी कस्बे में उनके फार्म हाउस “आरोग्य धाम” में ही किया गया जो कि उनकी इच्छा थी। मैं भी उस दिन उनकी शवयात्रा में शामिल होने के लिये जोधपुर से सादड़ी गया और अंतिम समय उन्हें माल्यार्पण किया, तब मेरा साथी मृत्यु शैया पर लेटे, आँखें बंद किये हुए, ऐसा आभास कराया कि वे मृत्यु के बाद भी चेहरे पर मुस्कान लिये मेरे तरफ देख रहे हैं। आपको जानकर ताज्जुब होगा कि उनकी शवयात्रा में उस दिन पाली जिले के ठाकुर, मुस्लिम नेता, सिख नेता, गरीब लोग तथा बम्बई से आये धनाढ्य लोग सम्मिलित हुए। उस दिन शवयात्रा में सभी गमगीन तथा स्वयं के आँसू रोकने की कोशिश कर रहे थे। अब आपको इस बात को जानने की उत्सुकता होगी कि मेरे साथी डॉक्टर ने ऐसा क्या जिन्दगी में किया, जिससे उपरोक्त माहौल बना। उसका थोड़ा लेखा-जोखा प्रस्तुत कर रहा हूँ।

  1. सभी बीमार, उनके रिश्तेदार, फार्म हाउस के कर्मचारी तथा जो भी उनसे मिलता, उनसे मित्रवत् व्यवहार। मैं उनके परिवार से साठ साल से जोधपुर में जुड़ा हुआ हूँ। मुझे याद नहीं कि अपनी जिन्दगी में उन्होंने किसी को नाराज किया हो। यहाँ तक कि उनकी जनता में ख्याति देख एक राजनीतिज्ञ ने उनको दुर्घटना का रूप देकर काफी वर्षों पहले मारने की कोशिश की थी, लेकिन उनके कार के ड्राईवर की सजगता से जान बच गई थी। उसी व्यक्ति को कालान्तर में भयंकर रोग ग्रसित होने पर बिना पूर्वाग्रह से इलाज कर स्वस्थ किया।
  2. पाली जिले में प्रमुख चिकित्सा अधिकारी के पद पर रहते हुए पाली सरकारी अस्पताल में, दान-दाताओं के आर्थिक सहयोग से, गहन चिकित्सा इकाई, शिशु रोग संस्थान, बर्न यूनिट, ट्रोमा सेन्टर तथा टी. बी. वार्ड बनवाये। इससे पूर्व सादड़ी कस्बें में छोटे से सरकारी अस्पताल में वहाँ के मुख्य चिकित्सा अधिकारी रहते हुए, दान-दाताओं को प्रेरित कर भवन का विस्तार, आधुनिक उपकरणों को उपलब्ध करवाया। इसी तरह जालौर में प्रधान चिकित्सा अधिकारी के रूप में सेवा देते हुए दान-दाताओं का सहयोग लेकर गहन चिकित्सा इकाई, टी.बी. वार्ड व बर्न यूनिट का निर्माण तथा आवश्यक उपकरण उपलब्ध करवाये।
  3. वे हरीगिरी चिकित्सालय, ककीरा (हिमाचल प्रदेश) के बिना वेतन के निदेशक रहे। इसके साथ इण्डियन रेड क्रास सोसायटी के सादड़ी, जालौर ब्रांच के संस्थापक अध्यक्ष रहे।
  4. उन्होंने करीब 300 एड्स पीड़ितों की पहचान पाली जिला जालौर तथा सिरोही जिलें में करवाई, जो कि 30 वर्ष पूर्व की बात है । उनको निःशुल्क दवा जीवन रक्षण के लिए तथा पुर्नवास की अपनी ओर से व्यवस्था की।
  5. उन्होंने पेरा साइट्रस रोग के कीटाणु, टेपवार्म, डेंगू के विषाणु तथा एड्स के बारे में शोध किये तथा इण्डियन मेडिकल एसोसिएशन ने अपने पत्रिका में प्रकाशित किये और संज्ञान किया। 6. यह मेरा सौभाग्य रहा कि उन्होंने जीवन पर्यन्त मेरे साथ सगे भाई की तरह रिश्ता निभाया तथा मस्त भरी जिन्दगी जीने की प्रेरणा दी।

 

पाठक बंधुओं, अब आपको विश्वास हो गया होगा कि ऐसे सरल, सेवाभावी, स्नेही, सम्भाव तथा दुःखियों के दुःख दूर करने वाले चिकित्सक को इस संसार से विदा होने पर किसको गम न होगा।

 

-Er. Tarachand

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Smile on face even after death

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