करीब 50 वर्ष पूर्व मैंने राजस्थान राज्य विद्युत मंडल जोधपुर में कनिष्ठ अभियन्ता पद पर कार्य शुरू किया। उस समय मेरी श्रीमती जी जब अपने पीहर तथा मेरे माता-पिता से मिलने गांव जाती, उस समय मैं एक होटल में खाना खाने जाता था। खाना खाते वक्त होटल के मालिक अग्रवाल साहब से गपशप होती रहती थी। कालान्तर में वे मेरे एक दोस्त बन गये और पारिवारिक सम्बन्ध स्थापित हो गये, यह क्रम उनके मृत्यु तक चला।
उनके तीन पुत्र, तीन पुत्रवधुएँ तथा पोते-पोती दो खण्ड के मकान में साथ साथ रहते थे। बच्चों को व्यापार सिखाया और धीरे-धीरे तीनों बच्चों को अलग-अलग धंधा शुरू करवा दिया। उसी घर में मेरे मित्र अपनी पत्नी के साथ भूतल पर रहते तथा भूतल के पिछले हिस्से तथा प्रथम मंजिल पर क्रमशः तीनों पुत्र अपने परिवार के साथ रहते थे। उनके घर में रसोईघर तीनों पुत्रों के अलग-अलग थे। मेरे मित्र अग्रवाल व उनकी पत्नी के लिए खाना तीनों बहुएं महीनेवार इंतजाम करती तथा उसी महीने में कोई दोस्त या मेहमान अग्रवाल साब से मिलने आता, तो जिस बहू की बारी होती, तुरन्त चाय नाश्ता का इंतजाम कर देती थी। इस तरह मित्र व श्रीमती का समय कमरे में आराम से कटता था।
कालान्तर में मित्र की श्रीमतीजी का बीमारी के बाद देहावसान हो गया तो अकेले अग्रवाल मित्र अपने कमरे में स्नान ध्यान करते और समय पर बहुएं अपनी बारी के हिसाब से चाय नाश्ता व खाने-पीने की व्यवस्था समय-समय पर कर देती, मित्र को कभी किसी तरह की दिक्कत नहीं हुई।
एक दिन मैं मित्र से मिलने उनके कमरे में गया, वो स्नान करके कमरे में आये ही थे। सोफे पर पेंट-शर्ट पड़ी थी, जिसे वे पहनना चाहते थे। इसी दरम्यान एक बहू (जो कि एक डॉक्टर की बेटी है) कमरे में आई और सोफे पर पड़ी ड्रेस ले जाने लगी। मेरे मित्र ने कहा, कल दो घंटे के लिए ही तो यह ड्रेस पहनी थी। बहू ने कहा, पापाजी, यह मुझे मैली दिखती है, इसलिये मैं धोने ले जा रही हूं।
इसी तरह कुछ दिनों बाद मैं मित्र से मिलने गया तो देखता हूं कि कमरे में दो बहुएं दो नई ड्रेस के कपड़े लेकर खड़ी थी और उनसे नये कपड़े सिलवाने के लिए कह रही थी। मेरे मित्र ने कहा, मेरे पास पुरानी बहुत सारी ड्रेसेज है। बहुओं ने कहा, मम्मी जी के देहावसान के बाद अब पुरानी ड्रेस न पहन कर हमारी पसन्द की ड्रेस पहनेंगे। आप पुरानी सही फीटिंग वाली ड्रेस दे दीजिए, अभी टेलर को नये ड्रेस सिलवाने जा रही हैं। इसी तरह करीब 80 वर्ष का जीवन सफर आराम से बीतने लगा।
उसके बाद कालान्तर में बीमारियों ने घेरना शुरू किया, तो बेटों ने पिताजी को समय-समय पर डॉक्टर के पास ले जाना, । दवाईयां लाना तथा जरूरत पर हॉस्पिटल में भर्ती करवा कर चिकित्सा उपलब्ध कराते रहते। जब घर में रहते तो उनके कमरे में एक-एक लड़का बारी-बारी से रात को सोता था। दिन में बहुओं ने समय-समय पर डॉक्टर की पर्ची के अनुसार दवाईयां देना बखूबी निभाया। 85 वर्ष के उम्र के बाद ज्यादा बीमार होने पर हॉस्पिटल में भर्ती करवाया गया, जहाँ रात को एक बेटा रात भर रहता और दिन में बहुएँ बारी-बारी हॉस्पिटल में रहकर पापाजी की तन्मयता से सेवा करती थी।
उनके देहावसान के करीब पांच दिन पूर्व उनके एक लड़के ने हॉस्पिटल से मुझे फोन किया कि पिताजी की तबीयत नासाज है और आपको पिताजी ने तुरन्त मिलने के लिए बुलाया है।
मैं उसी हॉस्पिटल में तुरन्त गया और बेटों को ढांढस बंधाया। फिर अग्रवाल मित्र ने मुझे नजदीक बुलाया और कहा, मेरे बेटों, बहुओं ने मेरी खूब सेवा की है और मैं पूर्ण सन्तुष्ट हूँ। मेरा आशीर्वाद है बेटे-बहुएं साथ रहे और उन्नति करें। मैं आशा करता हूं कि आपका प्यार बच्चों के साथ बना रहेगा। भगवान का आशीर्वाद है कि अग्रवाल मित्र के करीब दस साल देहावसान के बाद भी उनके पुत्र व बहुएं मुझसे सगे चाचाजी की तरह व्यवहार आज भी कर रहे हैं। अब आपको यकीन हो गया होगा कि मेरे अग्रवाल मित्र को वृद्धावस्था में कितना परिवार का सुख मिला।
एक दिन मैंने यह प्रसंग अपने साथी श्री कन्हैयालाल को बातों बातों में बताया तो उसने कहा, मेरे पास वाले मकान में एक जैन साहब रहते हैं, उनके भी तीन पुत्र व तीन पुत्रवधुएँ तथा पोते पोती साथ रहते थे। उनके घर के बाजू का दरवाजा मेरे घर के बाजू के दरवाजे के सामने खुलता है। जिस वजह से उनकी घर की गतिविधियाँ हमारे घर से दिखती रहती है।
मेरे पड़ौसी जैन साहब का देहावसान बीमारी के कारण तीन वर्ष पूर्व हो चुका है। बेटों-बहुओं ने पिताजी की सेवा तन मन-धन से की थी। आपको जानकर प्रसन्नता होगी कि परिवार हमारे पड़ौस में करीब 10 सालों से रह रहा है, लेकिन इस दरम्यान जैन साहब व उनकी पत्नी, बेटे बहुओं में आपस में कभी झगड़ा होते नहीं देखा। घर में एक रसोई जहां सबका खाना बनता है। तीनों बेटों ने अपने पिताजी की दुकान के संचालन की जिम्मेदारी आपस में बांट रखी थी। बहुओं ने घर की सफाई, खाना बनाना, कपड़े धोना, गमलों में पानी देना, माताजी को दवाइयाँ देना आदि कार्य आपस में तरह बांट रखा है, कि बिना हा-हुल्लड, बिना बाहर आवाज आये, निपटा देती है। बहुएँ आपस में बहनों जैसा व्यवहार करती है और सासूमाँ से अपनी माताजी जैसा व्यवहार करती है। बहुएँ व बेटे माताजी को बीमारी के समय डॉक्टर को दिखाना, दवाईयां समय पर देना, नाश्ता, खाना समय पर उपलब्ध कराती है और सासूजी उनके व्यवहार से पूर्ण सन्तुष्ट है। साथी कन्हैयालाल ने भी अपने पड़ौसी की इस तरह की हकीकत बताई, तो मेरे साथ आपको भी आनन्द आ गया होगा। देखा आपने जैन साहब की पत्नी को किस तरह वृद्धावस्था में परिवार का सुख मिल रहा है।
प्रिय पाठक बंधु ! आपके परिवार में बेटों-बहुओं ने इस तरह की व्यवस्था कर रखी है तो मेरी ओर से बधाई तथा आपके बेटे-बहुओं को आशीर्वाद। अगर किसी संयुक्त परिवार में इस तरह की व्यवस्था नहीं है तो ज्यादा देर नहीं हुई है, आपके संयुक्त परिवार में बेटों-बहुओं को यह लेख पढ़ावे व मेरी इच्छा जाहिर करे कि वे भी उपरोक्त अग्रवाल व जैन परिवार की तरह घर का वातावरण तैयार करें ताकि वे सब सुखी व प्रसन्न रहें और आप व आपकी धर्मपत्नी को वृद्धावस्था में दुःखी होने की नौबत नहीं आयेगी, न ही वृद्धाश्रम ढूंढने की। आपका घर स्वर्ग बन जायेगा ।
-Er. Tarachand
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