राजस्थान राज्य विद्युत मंडल में सेवारत रहते बहुत से जिलो में पदस्थापित रहा तथा विभिन्न जातियों के प्रमुखों से मिलता तथा उनके द्वारा समाज सुधार के किये गये कार्यों को नजदीक से देखने का मौका मिला। कुछ उदाहरण आपके विचारार्थ प्रस्तुत हैं
(1) राजपुरोहित समाज यह समाज अब अपने बलबूते पर काफी संगठित हो चुका है और उसमें उनके धर्मगुरु संत खेताराम जी महाराज का काफी योगदान रहा। श्री मोहनसिंह जी राजपुरोहित बीकानेर पशु विश्वविद्यालय में डीन रहे। उनके कार्यकाल में उन्होंने अपने समाज के युवा छात्रों को पशु चिकित्सा की तरफ प्रेरित किया। इस वजह से आज राजस्थान सरकार में राजपुरोहित समाज के काफी पशु चिकित्सक मिल जायेंगे। एक शादी समारोह में सन् 1981 में मेरा उनसे जयपुर में मिलना हुआ था। वे जाति की वेशभूषा कुर्ता धोती तथा साफा बांधे हुए थे। उनके पास सोफा सेट, कुर्सियां रखी हुई थी, लेकिन वे उन पर न बैठ कर समाज के लोगों के साथ जाजम पर बैठे बातें कर रहे थे। ऐसी उनकी सादगी तथा समाज के प्रति आदरभाव था।
(2) माथुर समाज : एक माथुर साहब के ऑफिस में उनकी जाति का ही चपरासी था, जो कि शाम के समय अफसर के घर सरकारी काम से जाता था तो अफसर तो कुर्सी पर बैठे मिलते। और वह चपरासी जाजम पर बैठ जाता था। कालान्तर में उस अफसर के लड़की की सगाई उस चपरासी के इंजीनियर लड़के से हो गई। सगाई के बाद वही चपरासी उसी अफसर के घर ऑफिस के काम के लिए जाते, तो माथुर साहब चपरासी को सोफे पर अपने पास बैठाते। कहते, आप ऑफिस में चपरासी, पर घर पर समधी हो।
(3) चौधरी समाज मैं पाली जिले का निवासी हूं। मैं बचपन में देखता था कि चौधरी समाज के लोग खेतीबाड़ी का काम करते और अधिकतर पहनावे में आधी धोती, ऊपर खुला बटन तथा सिर पर छोटा-सा साफा पहनते थे। होली-दिवाली या शादी बगैरह उत्सवों में कुर्ता/अंखरखी पहनते थे। कालान्तर में उनके धर्म गुरु ने उन्हें व्यापार की तरफ अग्रेसित किया। और युवा पीढ़ी दुकानों पर नौकर की तरह काम करने लगे। एक गांव का किस्सा बताता हूँ। सन् 1973 में, मैं फालना में सहायक अभियन्ता पद पर था, तब तक गांव के बाजार में सब जैन की दुकानें थी तथा अधिकतर नौकर चौधरी समाज के लड़के थे। सन् 1991 में फिर फालना अधिशाषी अभियन्ता के तौर पर पदस्थापित हुआ तो एक दिन उपरोक्त गांव का निरीक्षण किया। मैंने देखा कि पूरा मार्केट चौधरी समाज के कब्जे में आ गया। मालूम किया तो पता चला कि जब जैन समाज के लोग जैसे-जैसे गांव छोड़ कर बम्बई, पूना, अहमदाबाद की तरफ जाते रहे, वैसे वैसे ही उन दुकानों को चौधरी समाज के नौकर जो ईमानदार तथा वफादार थे, उनको देते रहे। इस तरह समाज में जाग्रति आई और पैसे वाले बन गये और आज वे ही लाखों रुपये समाज के छात्रावास, धर्मशालायें आदि के निर्माण में दान करने की हैसियत रखते हैं।
(4) जैन समाज : बाड़मेर में एक सेठजी के दो लड़के थे। बड़ा लड़का कांग्रेस पार्टी में तथा छोटा लड़का भाजपा में। सन् 1980-81 में श्रीमती इन्दिरा गांधी का बाड़मेर दौरा हुआ और उनके तराजू में सिक्कों से तोलने का कार्यक्रम हुआ। सेठ जी का बड़ा लड़का तराजू पर तौलने में अग्रणी था। फिर सरकार बदली। फिर कुछ महीनों बाद श्री लालकृष्ण आडवाणी का बाड़मेर आने का कार्यक्रम बना तो भाजपा कार्यकर्ताओं की तरफ से उन्हें भी सार्वजनिक स्थान पर तराजू में सिक्कों से तौलने का कार्यक्रम चल रहा था। मैंने देखा कि सेठजी का छोटा लड़का उस कार्यक्रम में अग्रणी कार्यकर्ता था। एक दिन वह सेठजी अपनी बिजली की समस्या के लिए मेरे पास आये, तो मैंने उन्हें पूछा, आप घर में दोनों बेटों का, एक कांग्रेस व दूसरा भाजपा विचारधारा वाला, किस तरह सामंजस्य बैठाते हो। उन्होंने बताया कि जब राज्य में कांग्रेस की सरकार होती है तो बड़े लड़के को दुकान से फ्री करके राजनैतिक गतिविधियों में भाग लेने के लिए भेज देते हैं और इसी तरह जब भाजपा की सरकार बनती हैं तो बड़ा लड़का मेरे साथ दुकान पर बैठ जाता है और छोटा लड़का दुकान से मुक्त होकर भाजपा की राजनैतिक गतिविधियों में सक्रिय रहता है। इस तरह चाहे कांग्रेस की सरकार हो या भाजपा की, अपनी दुकान उसी रफ्तार से बिना रुकावट के चलती हैं और दोनों पार्टियों के नेता मेरे से रामासामा करने दुकान पर आ जाते हैं।
इस सोच से जांगिड समाज दूर है। अपने समाज के लोग राजनैतिक विचारधारा के कारण एक दूसरे से कटे रहते हैं और असहयोग की भावना रखते हैं। इस वजह से समाज संगठित नहीं हो पाता। अपने समाज के लोग स्वयं बहुत होशियार, तकनीकी विद्या में पारगंत, लेकिन सामूहिक रूप से कमजोर है इसलिए राजनैतिक पार्टियां प्रधान, विधायक पदों के लिए टिकट नहीं देती। समाज के करीब 15-20 प्रतिशत लोग सरकारी नौकर, उद्योगपति, धनाढ्य, अच्छे बिल्डर बन गये हैं। बाकी 80 प्रतिशत समाज के सदस्य गांवों में तथा शहरों में पैतृक धंधे से रोज मजदूरी कर अपना व परिवार का भरण पोषण करते हैं, जैसा 40-50 साल से चला आ रहा है। इस तरह आर्थिक तथा राजनैतिक उन्नति नहीं कर पा रहे हैं।
अतः मेरा समाज के अग्रणी नेतागण, उद्योगपति, नौकरी में कर्मचारी/अधिकारी, भामाशाह, शिक्षाविद् से निवेदन है कि उपरोक्त वर्णित राजपुरोहित, माथुर, चौधरी व जैन समाज की तरफ देखें और उनकी तरह समाज को हर मोर्चे पर संगठित करें, पिछड़े वर्ग को आगे लावें, तभी समाज का विकास संभव है।
-Er. Tarachand
To read this story in English click here: