सास-बहू के बीच कटुता वाला रिश्ता वर्षों से चला आ रहा है। इस वजह से खुद परेशान होते है। जिससे पारिवारिक वातावरण दूषित होता है, बच्चे कुंठित होते है।
गाँवों में एक किस्सा आज भी प्रचलित है। पहले औरतें घरों में गायें रखी जाती थी और दही जमाकर बिलौना कर घी तैयार करती थी और पीछे जो छाछ (मट्ठा) रहती थी, उसे मौहल्लेवासी औरतों को निःशुल्क वितरित की जाती थी। एक बार सासुजी घर के बाहर गई हुई थी। मोहल्ले के अंतिम छोर पर रहने वाली बुजुर्ग महिला उस घर छाछ लेने आई, बहू ने कहा- अब छाछ नहीं बची हैं जब वह औरत अपने घर लौट रही थी उस बहू की सास मिल गई। पूछा कहाँ गई थी?
बुजुर्ग महिला ने बताया कि मैं तुम्हारे घर छाछ लेने गई थी, लेकिन बहू ने कह दिया कि छाछ नहीं है। सास ने उस औरत को कहा, मेरे साथ चलो, बहू तुम्हें छाछ के लिए कैसा मना कर सकती है? दोनों घर पहुंचे और उस महिला को बाहर के कमरे में बैठाकर अन्दर पूछताछ करने बहू के पास पहुंची। बहू ने सास को बताया कि छाछ खत्म हो गई है। सास ने कहा-काई बात नहीं। उसने बाहर के कमरे में बैठी महिला से कहा कि छाछ खत्म हो गई है। महिला ने कहा- मैंने तुम्हें पहले ही यह बात बता दी थी तो मुझे वापस अपने साथ घर लाने की क्या जरूरत थी? सास ने कहा बहू को मना करने का अधिकार नहीं है, इस घर से मना करना होगा तो मैं करूंगी। इस तरह का वर्चस्व सास-बहू के ऊपर रखना चाहती है।
बचपन में हम देखते थे कि गाँवों से रसोई के खाने-पीने के समान को भी सास अपने ताले में लगाकर रखती थी। खाना बनाने के पहले साथ अपने हिसाब से सामान बहू को देकर फिर सामान के कोठे पर ताला लगाकर रखती थी। जब सास गुजर गई और वह बहू बड़ी होकर सास बन गई तो उसने अपनी बहू के साथ वैसा ही व्यवहार किया जैसा उसकी सास ने उसके साथ किया था और ऐसा पीढ़ी दर पीढ़ी सास बहू के बीच वैमनस्यता तथा अविश्वास चलता रहता था।
गाँवों के पढ़े-लिखे लोगों ने शहरों की ओर पलायन किया तो धीरे-धीरे सास-बहू के रिश्तों में कुछ सुधार आने लगा।
पढ़े-लिखे सास-बहू सभी सुधर गये हो, ऐसी बात नहीं है जोधपुर में ओसवाल समाज की बात बतावें। एक बाप के दो बेटे हैं, बाप व्यापार करता था। बाप प्रौढावस्था में आया और उसे महसूस हुआ कि उसके द्वारा संचालित व्यापार घाटे में है अतः उसने पुत्रों से कहा कि एक भाई तो वर्तमान व्यापार समाल लो और दूसरा पढ़ा लिखा लड़का नौकरी कर ले और उसकी बहू भी पढ़ी-लिखी है, अतः वह भी नौकरी कर ले तो दोनों का भविष्य सही ढंग से बीत जायेगा। बड़े भाई को पुरानी दुकान और धंधा सौंप दिया और छोटा लड़का व बहू अध्यापन कार्य करने लगे। कुछ वर्षों के बाद छोटे लड़के के आवसन मण्डल से मकान आवंटित हो गया। छोटे लड़के ने अपने माताजी के देहावसान के बाद पिताजी से कहा-आप अपनी जमा पूंजी मुझे दे दो। मेरा भी अलग घर बन जायेगा। और आप मेरे साथ नये घर में रहना। बाप-बेटे की मीठी-मीठी बातों में आ गया और अपनी जमा पूंजी छोटे बेटे को सौंप दी। सालभर तो बाप आराम से रहा, फिर बहू ने अपना तांडव नृतय शुरू कर दिया। ससुर के साथ अभद्र व्यवहार, खाने-पीने की अव्यवस्था तथा प्रताड़ना इस तरह शुरू की कि बाप अत्यधिक परेशान हो गया और आखिर उसे अंतिम समय वृद्धाश्रम में गुजारना पड़ा।
पढ़े लिखे परिवार मे अच्छे संस्कार वाली बहू भी देखने को मिली। एक स्थान पर हमारे परिचित ब्रिगेडियर साहब के घर एक दिन मैं मिलने गया। बातों-बातों में एक पत्र का जिक्र आया तो ब्रिगेडियर साहब ने एक स्त्री से कहा- पुषु (पुष्पा का लाडला नाम) चार दिन पहले जो बड़े भाई साहब का पत्र आया था वह ढूंढ कर लेकर आ उनके व्यवहार को देखकर मैंने ब्रिगेडियर साहब से पूछा यह आपकी बेटी है क्या? उन्होंने कहा मेरी पुत्रवधु है और मेरा बेटा बार्डर पर तैनात है। उस दिन मुझे अहसास हुआ कि अगर बहू के साथ सास व ससुर अपनी बेटी समकक्ष व्यवहार करें तो सास-बहू के झगड़े काफी खत्म हो सकते हैं।
आप ताज्जुब करेंगे कि मेरे एक साथी की श्रीमतीजी अपनी पुत्र वधु से बेटी से भी ज्यादा प्यार करती हैं। जब सास बहू को अपनी पीहर चार-पांच दिन मिलने के लिए भेजती है। सास जब जल्दी आने का कारण पूछती है तो बहू कहती है- मम्मीजी आपके बिना मेरा मन नहीं लगता।
क्या ही अच्छा हो उपरोक्त ब्रिगेडियर साहब तथा सास के रूप में उपरोक्त मेरे साथी की श्रीमती की बहू के व्यवहार की तरह अन्यजन भी अपना व्यवहार बनायें तो घर की सास बहू की कटुता की कहानी पर अंकुश लग जाएगा। आज मैं पाठक बंधुओं से निवेदन करता हूँ कि वे अपनी पुत्र वधु को पुत्री का दर्जा देवें, सास अपनी पुत्रवधु को विश्वास में लेवें। पुत्रवधु सास-ससुर को पापा-मम्मी समझे तो इस समस्या का समाधान अवश्यंभावी है।
-Er. Tarachand
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