अक्सर देखा गया है कि सरकारी/अर्ध सरकारी नौकरी से सेवा निवृत्ति के बाद अधिकारी/कर्मचारी हीन भावना के शिकार हो जाते हैं।
उदाहरण के तौर पर बताता हूँ कि दस वर्ष पूर्व जयपुर अपने लड़के से मिलने गया था। उस समय शाम के समय हमारे कॉलोनी के पास एक बगीचे में घूमने गया तो इत्तिफाक से मेरे विभाग के इंजीनियर मिल गए, जो मेरे पूर्व परिचित निकले। उन्होंने बातों-बातों में बताया कि मैं इसी साल सेवानिवृत्त हुआ हूँ और सामने वाली कॉलोनी में रहता हूँ। मैंने इच्छा प्रकट की कि कल सुबह मैं आपके घर मिलने आऊँगा। उस इंजीनियर बंधु ने बताया कि आप आ जाना, लेकिन कॉलोनी में मेरा घर वगैरह पूछो तो आप बताना मत कि मैं सेवानिवृत्त हो गया हूँ। मैंने अभी कॉलोनी में बताया नहीं कि मैं रिटायर्ड हो गया है, मैं पूर्व कि तरह 10 बजे तैयार होकर घर से निकलता हूँ ताकि कॉलोनी वाले नमस्ते करते रहें।
उस साथी को 35-36 वर्ष की सेवा में रहते हुए उपभोक्ता जब भी मिलते थे, तो नमस्ते करते थे सामान्य प्रक्रिया है, फिर काम की बात करते थे। उस व्यक्ति को नमस्ते की पिपासा खत्म नहीं हुई, उसे में हीन भावना ही समझता हूँ।
मेरा आंकलन है कि अगर आप सरकारी नौकरी में रहते हुए जनता से अच्छा सवाद रखें और उनके काम में रोड़े नहीं अटकायें, तो वह आपके सेवानिवृत्ति के बाद भी आप मिलोगे तो आदर सहित रामासामा (नमस्ते) करेगा।
उदाहरण के तौर पर मैं जयपुर के चौमू डिवीजन में सन् 1985 से 1990 तक रहा और जनता से अच्छा सम्मान पाया, क्योंकि मेरी कोशिश रही है किसानों के फसल के समय सही ढंग से बिजली मिले, ऑफिस में भी उपभोक्ता अपनी शिकायत लेकर आते, तो उसे पूर्ण संतुष्ठ करने की कोशिश करता।
उपरोक्त मुलाकात के तीन दिन बाद में जयपुर जी.पी.ओ. एम.आई. रोड़ पर सड़क किनारे खड़ा था और टैक्सी का इंतजार कर रहा था। कुछ समय बाद गलत दिशा से मेरी ओर तीन चार किसानों से भरी टैक्सी आती दिखी तो मैंने सोचा कि शायद ब्रेक फेल हो गए हैं, मैं थोड़ा पीछे हटा। मैंने देखा कि वे किसान तथा सरपंच उतरे जो रामपुरा डाबड़ी गाँव के होने वाले बताए और नमस्ते हुई। उन्होंने बीस वर्ष बीतने के बाद भी मुझे दूर से पहचान लिया। इसलिए ड्राईवर को गलत दिशा में मुड़कर मेरे पास मिलने के लिए आए हैं। उन्होंने आग्रह किया कि मैं आज उनके साथ उनके गाँव चलू और आपके बीस वर्ष पूर्व लगाए पौधे को देखूं । लेकिन उस दिन मुझे वापस जोधपुर लौटना था, इसलिए मैं तीन-चार महीने बाद उस गाँव गया। सरपंच ने पौधे की बात की तो मुझे याद आया कि उस गाँव के एक श्रमिक की विद्युत दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी। जब मैं चौमूं डिवीजन में अधिशाषी अभियन्ता था और रामपुरा डाबड़ी मेरे एक सब डिवीजन में पड़ता था। मैं भी अपने सहायक अभियंता, कर्मचारियों के साथ उस मृतक के दाह संस्कार में गया था। वहाँ उस दिन सरपंच ने बताया था कि विधवा गरीब परिवार से है और यहाँ पर कोई जमीन जायदाद नहीं है। पढ़ी-लिखी भी नहीं है, इसलिए अब ये विधवा भीख मांगेगी। भगवान की कृपा रही कि मेरे दिमाग में उसकी मदद करने की इच्छा प्रबल हुई। मैंने अपने अधीनस्थ अभियन्ताओं, श्रमिक नेताओं से बात की और उस विधवा को मदद की बात की, तो सब सहर्ष बिना किसी वाद-विवाद के पूर्ण सहमत हो गए। पाठकगण, आपको जानकर प्रसन्नता होगी कि चौमूं खंड के सभी अभियन्ता, कर्मचारी व श्रमिकों के आर्थिक सहयोग से गाँव रामपुरा डाबड़ी में एक चौटे में खाली प्लाट शायद 25 बाय 50 का विधवा के नाम पर खरीदा। दो कमरे, रसोई, लेट-बाथ तथा बाउण्ड्री पूर्ण निर्माण करवाया तथा बिजली-पानी का कनेक्शन करवाए। उस विधवा को करीब 86000/- रुपए मृत्यु उपरांत क्षति पूर्ति रकम दिलवाई, विद्युत विभाग में सरकारी नौकरी दिलवाई। गाँव में एक भव्य आयोजन करवाया गया। विधायक द्वारा विधवा को भवन भेंट किया तो गाँव वालों ने उस दिन करीब 300 व्यक्तियों को भोजन की व्यवस्था की थी। हमारे तत्कालीन अधीक्षण अभियन्ता तो इतने भाव विभोर हो गए कि उन्होंने कहा मैं अब भाषण देने की स्थिति में नहीं हूँ ।
इस तरह का व्यवहार अगर जनता से सरकारी अफसर/ कर्मचारी रखें तो मेरे ख्याल से ऐसी जनता आपको सेवा निवृत्ति के बाद भी रामासामा करेगी। क्यों ठीक कहा न मैंने ?
-Er. Tarachand
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