जी हाँ, आज मैं आपके सम्मुख उन सिद्धान्तों का जिक्र कर रहा हूँ, जो कि मेरे एम.बी.एम इन्जीनियरिंग कॉलेज के प्रधानाचार्य स्व. वी.जी. गर्डे साहब ने अपनाये थे। हॉलाकि मुझे कॉलेज छोडे करीब 50 वर्ष बीत चुके है और गर्डे साहब देवलोक गमन भी काफी वर्षों पूर्व कर चुके है, लेकिन उनके व्यक्तित्व की झलक तथा उनके उत्कृष्ट सिंद्धान्त आज भी मेरे दिमाग में जीवित हैं। देखिये
- वे समय के बहुत पाबन्द थे। सही 7:35AM पर कॉलेज के प्रार्थना स्थल पर पहुँच जाते। एक दुलीचन्द मिस्त्री अपनी अलार्म घड़ी, जो उनके पास रहती थी, गर्डे साहब की घड़ी से रोज मिलाते और कॉलेज के सभी कक्षा के कमरों में टंगी घड़ी से ठीक मिलाते। ठीक 7:40AM पर प्रार्थना शुरू होती. तब हर विद्यार्थी, कर्मचारी अथवा प्रोफेसर जहाँ होते, अपनी साइकिल / गाडी आदि रोककर वही प्रार्थना समाप्त होने तक खड़े रहते। ठीक 8:00AM पर विद्यार्थी कक्षा में उपस्थित हो जाते और 5 मिनट बार कक्षा का दरवाजा बंद कर दिया जाता।
- वे जब कॉलेज का निरीक्षण करने निकलते, तो किसी कक्षा के विद्यार्थियों की कोई गलती होती, तो सिर्फ विभागाध्यक्ष को बुला कर कहते। हमने उन्हें किसी विधार्थी से खुले में बात करते नहीं देखा।
- वे राजनेताओं के पिछलग्गु नहीं थे। एक बार कॉलेज में कोई बड़ा आयोजन था, जिसमें एक मंत्रीजी को भी बुलाया गया था। मंत्री महोदय आधा घंटा लेट हो गये, तो गर्डे साहब ने सभा की कार्यवाही शुरू कर दी और अपना भाषण शुरू कर दिया। फिर मंत्री महोदय आयें तो बोले- मैने आज यहाँ आने में देरी कर दी, उसका खेद है, अपना स्थान ग्रहण करने के बाद बाले-गर्डे साहब आप अपना भाषण शुरू रखे।
- कॉलेज में उनका लड़का जिनका नाम ए.वी. गर्डे था, वह भी हमारी कॉलेज में ही पढ़ता था, लेकिन वह कभी गर्डे (पिताजी) साहब के ऑफिस में नहीं गया। कॉलेज में विभिन्न बिल्डिींग, अलग-अलग इन्जीनियरिंग विषयों के विद्यार्थी आपस में एक दूसरे को कम पहचानते थे। मुझे दूसरे साल में, पता चला जब एक दिन कॉलेज के नोटिस बोर्ड पर उनका नाम पढा। प्रधानाचार्य व उनका पुत्र कॉलेज से करीब 3 किलोमीटर दूरी पर रहते थे, लेकिन गर्डे साहब ब्लू रंग की अम्बेसडर कार में कॉलेज आने और उनका बेटा उसी बंगले से साइकिल से कॉलेज आता-जाता था। बताते है कि एक दिन शाम प्रधानाचार्य कार से निवास स्थान जा रहे थे, तो रास्ते में ड्राईवर ने एक जगह गाड़ी रोकी। उन्होंने ड्राईवर से पूछा- गाड़ी क्यों रोकी? ड्राईवर ने बताया- सर अविनाशजी के साईकिल की चैन टूट गई है, अतः वे साईकिल हाथ में लेकर पैदल चल रहे है। गर्डे साहब ने कहा- तुम गाड़ी चलाओं, वह साइकिल लेकर आ जायेगा।
मैं खुशनसीब रहा कि मैं उनका विधार्थी रहा और उनकी समय की पाबन्दी को मैने अपने जीवन में ग्रहण कर दिया। उनके आशीर्वाद से मैने अपने विद्युत मंडल सेवा काल में तथा अब 23 वे सेवा निवृति के समय में भी समय की पाबन्दी से जिंदगी चला रहा हूँ हालाकि इसमें 100 प्रतिशत श्रीमतीजी का सहयोग रहता है। धन्य है, ऐसे महापुरूष, उन्हें कोटि कोटि नमन।
-Er. Tarachand
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