बात सन् 1975 की है जब में राज. राज्य विद्युत मण्डल चिड़ावा में सहायक अभियन्ता के पद पर कार्य कर रहा था। उस समय पिलानी कस्बा भी चिड़ावा सब डिवीजन के अन्तर्गत था। पिलानी के सबसे धनाढ्य व्यक्ति श्री घनश्याम जी बिरला देश में नम्बर एक पर थे। बिरला इंजीनियरिंग कॉलेज पिलानी उन्होंने ही स्थापित की थी। कुछ तकनीकी खामियों की वजह से इंजीनियरिंग कॉलेज प्रशासन पुरानी दर से विद्युत बिल जमा करता था। लेकिन नये टैरीफ की वजह से पूरा बिल जमा नहीं होता था। उच्च अधिकारियों के निर्देशन में उस कॉलेज को सन् 1975 में करीब 76 लाख 15 वर्ष के एरियर का बिल भेजा गया था।
एक सप्ताह बाद बिरलाजी दिल्ली से पिलानी आए और रविवार को मुझे उनके निवास पर भोजन पर आमंत्रित किया। मैंने संदेशवाहक को न आने का बहाना बनाया, लेकिन बिरला जी के दूसरी बार आग्रह करने पर में गया। आप ताज्जुब करेंगे कि उन्होंने एरियर बिल के बारे में एक शब्द भी नहीं बोला, मैं हैरान था। एक सप्ताह पिलानी गया मुख्य ट्रस्टी से मिला तो उन्होंने बताया कि बिरलाजी कह कर गये हैं कि स्थानीय इंजीनियर ने उच्च अधिकारियों के निर्देश से बिल बनाया। होगा, इसलिए आप इनसे ताल्लुकात खराब न करें। हम मामले को विद्युत मंत्री से बात कर इसका समाधान करेंगे। क्या ऐसा व्यवहार आज के धनाढ्य व्यक्ति से अपेक्षा कर सकते हैं?
सन् 1976 में पिलानी का दौरा, सुप्रीम कोर्ट के जज उठवालिया साहब का कॉलेज के कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में प्रायोजित था। उन्हें सरकार की तरफ राजकीय मेहमान का दर्जा दिया गया था। उस दिन जिला कलेक्टर, पुलिस अधीक्षक, मुख्य अधिकारी तथा मैं उनके प्रोटोकॉल में उन्हें राजस्थान सीमा पर मिले और पर स्वागत किया और बाद में पिलानी लाकर गेस्ट हाउस में ठहरा दिया। पास के दूसरे कमरे में हम चारों गप्प-शप्प कर रहे थे। श्रीमान पुलिस अधीक्षक ने एक मजाकिया किस्सा ऐसा सुनाया कि हम सब जोर-जोर से हंसने लगे। बोड़ी देर बाद गेस्ट हा के कार्यकर्ता ने आकर बताया आप सब को जब साहब ने उनके कमरे में बुलाया है।
हम थोड़े संकुचित थे, लेकिन आप ताज्जुब करेंगे जब जन साहब ने कहा आप मुझे वही बात बताओ, जिस पर आप हंस रहे। मैं भी आपकी तरह सामाजिक प्राणी हूँ और सुप्रीम कोर्ट की कुर्सी दिल्ली छोड़कर आया हूँ।
तीसरा मामला जालोर जिले का है, वहाँ एक धनाढ्य व्यक्ति जिस गाँव का निवासी था वहीं मेरी पोस्टिंग/निवास था। सन् 1976 में वित्तमंत्री श्री मोरारजी देसाई ने 1000 रुपए के नोट एक दिन बंद होने की घोषणा की। उस गाँव में मेरे घर टेलीफोन था और मुंबई से उनके मुनीम ने मुझे फोन पर बताया कि कृपया सेठजी को अपने घर बुला लीजिये जरूरी काम है। आधे घंटे बाद सेठ की मुनीम से बात हुई और बताया 75 लाख रुपए दो नम्बर के हैं उसका क्या करूं? सेठजी ने दो मिनट सोचकर जवाब दिया उनको जला दो। अब आप अंदाजा लगा सकते हैं, उस सेठ के पास कितनी सम्पत्ति थी।
वही सेठ गाँव की मेरे साथ एक दिन होटल पर चाय पी रहे थे। उनके ताऊजी उस गाँव में छोटी सी दुकान | चलाते थे। वे भी चाय पीने वहाँ गये थे। उस सेठ ने कहा आज की चाय का पेमेन्ट ताऊजी करेंगे, उनके आगे मेरी क्या औकात है?
इतना पैसा होने के बाद भी उस सेठ को इतने वर्षों के बाद भी नहीं भूल पाया हूँ। उसकी नम्रता, बड़ों के प्रति आदर भाव। वह इतना बड़ा करोड़पति सेठ होने के बाद भी अभी भी जमीन से जुड़ा हुआ प्रतीत हुआ था। धन्य है, उपरोक्त तीनों बड़े लोग और उनकी अविस्मरणीय बातें।
-Er. Tarachand
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