प्रेरणादायी प्रसंग

पुत्रवधु का ससुर से :- मेरे एक साथी विद्युत विभाग से अधिशासी अभियन्ता सेवानिवृत है और जोधपुर में ही निवास करते हैं। उनकी धर्मपत्नी का स्वर्गवास दो वर्ष पूर्व हो चुका है। उनके बड़े पुत्र का देहावसान पन्द्रह वर्ष पूर्व हो चुका है। छोटा बेटा व बहु डॉक्टर सरकारी नौकरी की वजह से सरकारी क्वार्टर में रहते है। जैसे वृद्धावस्था बढ़ती गई उन्होंने सोचा कि अपने सामने ही दोनो बेटों को अपनी संपति बाँट दूं। इसलिये उन्होंने पॉश कॉलोनी में अपने बंगले को बेच दिया तथा बेटों व बेटियों में सम्पति का बंटवारा कर दिया और छोटे लड़के की पुत्रवधु व दो पोतों के लिये शहर से बाहर की कॉलोनी में बड़ा मकान खरीद लिया तथा खुद विधवा बहु के साथ रहने लग गये। अस्सी का दशक पूर्ण करने के बाद शरीर में शिथिलता आने लगी और बीमारियों ने घेर लिया। मैं उन्हें संभालने जाता रहता हूँ। एक दिन मैं उनके घर पहुँचा तो पुत्रवधु ने कहा आप बैठिये में पापाजी को खाना खिला देती हूँ। मेरे सामने ही ससुर को पलग पर सहारा देकर बैठा दिया और पीछे से पैर से सहारा देकर एक हाथ में थाली तथा दूसरे हाथ में रोटी का कौर खिलाने लगी।

 

मेरे साथी कमजोरी की वजह से आँख भी नहीं खोल पा रहे थे और भी कमजोर हो गई थी। खाना खिलाने के बाद वह ससुरजी के सिर पर सहलाने लगी जैसे एक माँ बच्चे को स्नान करने के बाद सिर सहलाती है। मैंने कल्पना की मेरे साथी की माताजी की मृत्यु के बाद उन्हीं के घर पुत्रवधु के रूप में पुनः जन्म हुआ है। देखा आपने पुत्रवधु की ससुर से रिश्तेदारी बेटे की पिताजी से मेरे जान पहिचान वाले राजस्थान सरकार में उच्च प्रशासनिक अधिकारी है। उनका छोटे गाँव में एक शिक्षक के घर पर जन्म हुआ। फिर अपनी मेहनत से भारतीय प्रशासनिक सेवा में चयन हुआ। उनकी शादी भी उच्च प्रशासनिक अधिकारी के साथ हुई, जो कि शायद उच्च घराने की लगती थी। वे अपने शिक्षक समुर से मिलने गाँव नहीं जाती थी, लेकिन भाई साहब पिताजी को संभालने गाँव दौरा करते रहते थे। वे गुरुदेव समय के साथ पूर्ण वृद्धावस्था में पहुंचे तो बेटे ने कहा आपकी आखिरी इच्छा क्या है ? पिताजी ने कहा- मैं चाहता हूँ मैं हरिद्वार में रहूँ और वहीं अपना प्राण त्यागे। वह प्रशासनिक अधिकारी पिताजी को हरिद्वार ले गये। तीन-चार महिने उनकी पूरी सेवा की, यहाँ तक कि पिताजी के मल-मूत्र से गंदे कपड़े खुद धोते थे और देह त्यागने के पहले पिताजी खूब आशीष देते गये। देखी आपने बेटे की पिताजी के प्रति के प्रति कर्तव्यपरायण।

 

-Er. Tarachand

To read this story in English click here:

Inspirational Story

Leave a Reply