यह प्रसंग उस समय का है, जब जोधपुर में नये थर्मल पॉवर स्टेशन का निर्माण कार्य चल रहा था और उसमें व्ययन मशीन स्वीडन से आयातित थी और उसको स्थापित करने का स्वीडिश इरेक्टर मिस्टर एबेरस्टन को मिला हुआ था। मि. एबेरस्टन समय का बहुत पाबन्द तथा काम के समय एक मिनट भी व्यर्थ नहीं गंवाता था। पॉवर स्टेशन पर कोयले की गाड़ियों को खाली करने के लिए ठेका दिया हुआ था और ठेकेदार के मजदूर उन गाड़ियों को रोज खाली करते थे। एक दिन सभी मजदूर रेलगाड़ी के डिब्बों से कोयला खाली करने में व्यस्त थे और उनके बच्चे पास ही पेड़ की छाया में खेल रहे थे। उनमें से एक बच्चा सरकता सरकता पास ही गंदे पानी में पड़ गया और दूब गया। मजदूरों ने देखा और बच्ची को पानी से बाहर निकाला, तब तक उसके शरीर में पूरा गंदा पानी भर गया था और वह अंतिम सांस लेने की स्थिति में आ गया। मजदूर रोते हुए मेरे पास आये उस समय विद्युत विभाग की गाड़ी शहर में सामान लेने गई हुई थी. मैंने स्वीडिश इरेक्टर को बताया कि ये तुरन्त मेरे साथ कोल हेन्डलिंग प्लान्ट तक चले और बच्चे को अपने हाथों में लिया । अपना मुह बच्चे के मुंह पर लगाकर बच्चे के पेट में भरा पानी अपने मुंह में डालते और बाहर थूकते । वे इस प्रक्रिया के द्वारा बच्चे के पेट का गन्दा पानी तब तक अपने मुंह में लेते रहे जब तक बच्चा रोने नहीं लगा। इस बीच बच्चे की शौच से इरेक्टर के हाथ व कपड़े गन्दे होने लगे। मेर स्टाफ के लोग उनके हाथों से शौच साफ करने लगे तो उन्होंने कहा हम रोज जाने-अनजाने कितनी गलतियां (पाप) करते हैं. आज ही मुझे अच्छा काम करने का मौका मिला है, अतः मुझे अपना काम करने दो। उस दिन उस इरेक्टर ने गरीब मजदूर के बच्चे को नई जिन्दगी दी।
यह इरेक्टर उम्मेद भवन पैलेस में ठहरा हुआ था और एक भारतीय इरेक्टर श्री नैयर, जोकि स्वीडिश कम्पनी से प्रशिक्षण प्राप्त था, उनके साथ काम करता था।
एक दिन दोनों इरेक्टर शाम के समय भोजन से पूर्व उम्मेद भवन में शराब पी रहे थे, तब नैयर ने नशे में मजाक के लिहाज से कह दिया- स्वीडन की लड़किया बहुत खूबसूरत होती है और ……..
स्वीडिश इरेक्टर तुरन्त अपने कमरे में जाकर पिस्तौल ले आया और नैयर के सीने पर तान दी नैयर का नशा काफूर हो चुका था। एबेरस्टन ने कहा- नैयर तुम मेरे बहुत करीब दोस्त हो, इसलिए गोली नहीं चला रहा हूं। आगे से भविष्य में मेरे देश के बारे में ऐसी बेहूदा बात मत करना अन्यथा तुम्हें शूट करने में एक मिनट भी नहीं लगाऊंगा। मुझसे नाराज हो तो इसी पिस्तौल से मुझे मार दो मै तुम्हें लिख कर देता हूं कि तुम्हारा कुछ नहीं बिगड़ेगा। मेरे देश के प्रति गलत बात मुझे सहन नहीं हो सकती।
इस प्रसंग के संदर्भ में आज हम अपने बारे में सोचे कि हम देश व जांगिड़ समाज के प्रति कितने वफादार है और तो और समाज में कितने फूट के घड़े विकसित हो रहे है और एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति की बुराई करके ही सन्तुष्ट हो रहा है, मजे ले रहा है। अत महासभा के कर्णधारों से निवेदन है कि वे इन घड़ों का एक सूत्र में पिरोये और जांगिड़ समाज में एकता की भावना विकसित करें तभी देश के प्रति निष्ठा जागृत होगी।
-Er. Tarachand
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