एक गृहस्थ कबीर के पास सत्संग के लिए गया। वह अपने दाम्पत्य जीवन से असन्तुष्ट था। स्वागत शिष्टाचार के बाद गृहस्थ ने कबीर से पूछा भगवान सुखी दाम्पत्य जीवन का रहस्य क्या है ?
कबीर उक्त व्यक्ति की निराशा मुख मुद्रा एवं हाव भाव देखकर समझ गये कि उसकी पत्नी से पटती नहीं है। कबीर यह कह कर कि अभी समझाता हूं। घर के अन्दर चले गये। थोड़ी देर बाद कबीर अन्दर से सूत लेकर लौटे और उस व्यक्ति के सामने बैठ कर सुलझाने लगे। कुछ देर बाद कबीर ने अपनी पत्नी को आवाज दी। यहां बड़ा अधेरा है. सूत नहीं सुलझता जरा दीपक को रख जाओ। कबीर की पत्नी दीपक जलाकर लाई और चुपचाप रख गई। उस गृहस्थ को आश्चर्य हुआ कि क्या कबीर अधे हो गये है जो सूरज के प्रकाश में भी उन्हें अधेरा लगता है। इनकी पत्नी भी कैसी है जो बिना प्रतिवाद किये चुपचाप दीपक जलाकर रख गयी। इसके बाद कबीर की पत्नी दो गिलासी में दूध लेकर आई एक उस व्यक्ति के सामने रख दिया तथा दूसरा कबीर को दिया।
दोनो दूध पीने लगे। फिर थोड़ी देर बाद कबीर की पत्नी फिर आई और उनसे पूछने लगी कि “दूध में मीठा तो कम नहीं है।” कबीर बोले नहीं बहुत मीठा है। इसके बाद से दूध पी गये। वह आदमी फिर हैरान हुआ कि दूध में मीठा तो था ही नहीं। दूध में शक्कर की जगह नमक डाला हुआ था।
इसके बाद यह आदमी झल्लाते हुए बोला- महाराज मेरे प्रश्न का उत्तर नहीं दे सकते तो मैं चलू ? कबीर बोले- अरे भाई समझा तो दिया और क्या सुनना चाहते हो ? सुखी गृहस्थ जीवन के लिए यह आवश्यक है कि सदस्यों को अपने अनुकूल बनाओ और स्वयं भी परिवार के अनुकूल बनो। पत्नी व संतान को सुशील, आज्ञाकारी बना सको और खुद भी जीवन में हर जगह स्नेह व क्षमा का दान दे सको तभी गृहस्थ जीवन सफल हो सकता है। वह व्यक्ति सारी बातें समझ गया और खुशी खुशी घर लौट गया।
नोट यह प्रसंग उन दम्पतियों के लिए मार्गदर्शक होगा, जो कि शादी के साल दो साल बाद आपसी खटपट की वजह से तलाक लेना चाहते है। आज दिल्ली जैसे महानगर में औसतन प्रतिदिन 50 तलाक के मामले न्यायालयो में दाखिल हो रहे है।
साभार मंथन।
-Er. Tarachand
To read this story in English click here: