Every morning I go for a walk in Ashok Udyan of Jodhpur, there I once came across a person who was very sad. When both of us grew closer over time, he told me the story of the last phase of his life. He has three daughters and one son, he himself has retired from government service. All three daughters stay with their in-laws after marriage. His boy was simple but weak of mind. For the marriage of the boy, he got married to a girl from a family of weak financial condition from Maharashtra state. He explained the actual condition of the boy to the girl’s family and also shared the information that he himself is in a government job. Therefore, they will get basic facilities of food and life.
Author: Eng. Tara Chand
Patriotism and Politics
Today I am telling you 02 incidents that witnessed with my eyes. In the year 1967, when I started a job in New Power House, Jodhpur as a Junior Engineer, Stall Company Turbine was being installed there. Those turbines were imported from Sweden and a Swedish named Eberston was tasked to install them. An Indian erector was also attached with him, his name was Nayyar, so that in future he could take care of the turbine.
” सफल दाम्पत्य”
एक गृहस्थ कबीर के पास सत्संग के लिए गया। वह अपने दाम्पत्य जीवन से असन्तुष्ट था। स्वागत शिष्टाचार के बाद गृहस्थ ने कबीर से पूछा भगवान सुखी दाम्पत्य जीवन का रहस्य क्या है ?
कबीर उक्त व्यक्ति की निराशा मुख मुद्रा एवं हाव भाव देखकर समझ गये कि उसकी पत्नी से पटती नहीं है। कबीर यह कह कर कि अभी समझाता हूं। घर के अन्दर चले गये। थोड़ी देर बाद कबीर अन्दर से सूत लेकर लौटे और उस व्यक्ति के सामने बैठ कर सुलझाने लगे। कुछ देर बाद कबीर ने अपनी पत्नी को आवाज दी। यहां बड़ा अधेरा है. सूत नहीं सुलझता जरा दीपक को रख जाओ। कबीर की पत्नी दीपक जलाकर लाई और चुपचाप रख गई। उस गृहस्थ को आश्चर्य हुआ कि क्या कबीर अधे हो गये है जो सूरज के प्रकाश में भी उन्हें अधेरा लगता है। इनकी पत्नी भी कैसी है जो बिना प्रतिवाद किये चुपचाप दीपक जलाकर रख गयी। इसके बाद कबीर की पत्नी दो गिलासी में दूध लेकर आई एक उस व्यक्ति के सामने रख दिया तथा दूसरा कबीर को दिया।
दोनो दूध पीने लगे। फिर थोड़ी देर बाद कबीर की पत्नी फिर आई और उनसे पूछने लगी कि “दूध में मीठा तो कम नहीं है।” कबीर बोले नहीं बहुत मीठा है। इसके बाद से दूध पी गये। वह आदमी फिर हैरान हुआ कि दूध में मीठा तो था ही नहीं। दूध में शक्कर की जगह नमक डाला हुआ था।
इसके बाद यह आदमी झल्लाते हुए बोला- महाराज मेरे प्रश्न का उत्तर नहीं दे सकते तो मैं चलू ? कबीर बोले- अरे भाई समझा तो दिया और क्या सुनना चाहते हो ? सुखी गृहस्थ जीवन के लिए यह आवश्यक है कि सदस्यों को अपने अनुकूल बनाओ और स्वयं भी परिवार के अनुकूल बनो। पत्नी व संतान को सुशील, आज्ञाकारी बना सको और खुद भी जीवन में हर जगह स्नेह व क्षमा का दान दे सको तभी गृहस्थ जीवन सफल हो सकता है। वह व्यक्ति सारी बातें समझ गया और खुशी खुशी घर लौट गया।
नोट यह प्रसंग उन दम्पतियों के लिए मार्गदर्शक होगा, जो कि शादी के साल दो साल बाद आपसी खटपट की वजह से तलाक लेना चाहते है। आज दिल्ली जैसे महानगर में औसतन प्रतिदिन 50 तलाक के मामले न्यायालयो में दाखिल हो रहे है।
साभार मंथन।
-Er. Tarachand
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“बोध प्रसंग – 6”
इस प्रसंग को पढ़ते समय आपको आश्चर्य होगा कि क्या ऐसा भी संभव है ? राजस्थान के झुंझनू जिले के चिड़ावा कस्बे में एक जांगिड परिवार में आज से 70 वर्ष पूर्व देवीलाल नाम के शिशु का जन्म हुआ। बचपन में पढ़ाई शुरू की. लेकिन जब वह चौथी कक्षा में पढ़ रहा था, तभी उनकी माताजी का देहावसान हो गया। पिताजी ने दूसरा विवाह कर लिया और जब देवीलाल चौथी कक्षा पास कर चुका था विमाता के आने के बाद देवीलाल पर मुसीबतों का पहाड़ टूटना शुरू हुआ। उसकी पढ़ाई बंद कर दी गई और लकड़ी के काम सीखने के लिए मजदूरी में भेज दिया। बालक को पढ़ने की बहुत इच्छा थी। अतः दिन भर लकड़ी का काम करने के बाद शाम को घर पर पढ़ाई करने का निश्चय किया। सहपाठियों से किताबें लेकर तथा कॉपी पेंसिल खरीद कर पढ़ाई घर पर शुरू की। बिनाता को यह गवारा नहीं था। वह देवीलाल की कॉपी व पुस्तकों को फाड़ देती। उसके साथी अगर पढ़ाई की चर्चा के लिए घर आते, माताजी उनसे लड़ पड़ती, पिताजी खामोश रह कर सब देखते रहते, लेकिन बालक के लिए कुछ नहीं कर सके। बालक ने हार नहीं मानी और विकट परिस्थितियों में भी पढ़ाई चालू रखी। अपने पूर्व के चौथी कक्षा के प्रधानाध्यपक जी के पास गया और निवेदन किया कि वे मुझे चौथी पास का प्रमाण पत्र देवे ताकि मैं दसवी कक्षा की परीक्षा में प्राइवेट विद्यार्थी के रूप में परीक्षा दे सकूं। प्रधानाध्यापक जी हंसने लगे और कहा कि तू दसवी कक्षा कैसे पास कर सकता है जबकि बहुत से विद्यार्थी लगातार स्कूल में पढ़ाई करने के बाद भी उत्तीर्ण नहीं हो पाते। खैर चौथी कक्षा का प्रमाण-पत्र लेकर जब वह बालक धोती पहना हुआ मजदूरी के वेस से रवाना हुआ तो सभी अट्ठहास करने लगे।
उस विद्यार्थी ने दसवी पास की। फिर प्राइवेट विद्यार्थी के रूप में इन्टर पास किया और उनकी शादी हो गई। अब वह एक स्कूल में नौकरी करने लगे और किराये के मकान में रहकर आगे की पढ़ाई जारी रखी। फिर बी.ए. पास किया और कुछ वर्षों बाद उनकी पत्नी को टी.बी. की बीमारी हो गई। काफी लम्बा ईलाज करवाया, साथ ही नौकरी जारी रखी और आगे की पढ़ाई भी पत्नी को टी.बी. की बीमारी के कारण नजदीक रिश्तेदार जिनके यहां किराये के कमरे में देवीलाल रहते थे. उन्हें अपने घर में रखने से मना कर दिया। लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और आगे की पढ़ाई की सोपान कर चढ़ते हुए तीन विषयों में एमए तथा पी. एच. डी की डिग्रियां हासिल की और कॉलेज में प्रोफेसर के पद पर सेवायें देते हुए अब सेवानिवृत्त है। यह प्रसंग कहानी की कल्पना न होकर हकीकत है।
-Er. Tarachand