पैसों की माया

यह बात करीब बीस साल पुरानी है जब मैं पाली जिले के सोजत करने में राजस्थान विद्युत मंडल में अधिशाषी अभियन्ता के पद पर कार्य कर रहा था। उसी इलाके में एक प्रसिद्ध गाँव में एक समाज विशेष के साधु विराजमान थे। एक दिन उनके सामाजिक महोत्सव में साधु विराजमान थे। एक दिन उनके सामाजिक महोत्सव में साधु महाराज ने मुझे बुलावा भेजा और मै अपने अधिनस्थ अभियन्ताओं व स्टाफ को लेकर वहाँ समय पर पहुँच गया।

 

साधु महाराज ने मीटिंग में लोगों से मेरा परिचय करवाया और कहाँ विद्युत संबंधी शिकायतें अगर कोई हो तो इन्हें बताये। जिन्होंने जो भी विभाग सम्बन्धी शिकायते बताई, नोट कर ली गई और समाधान का आश्वासन दिया, उसके बाद साधु महाराज ने एक सेठ का माल्यापर्ण करवाकर बहुमान किया और दानवीर शब्द से उन्हें नवाजा गया।

 

जब हम मीटिंग से महात्माजी से आज्ञा लेकर जाने लगे तो वे ही उपरोक्त दानवीर सेठ हमारे साथ हो लिये और कहा कि आप प्रसादी (भोजन) लेकर जावे। हमने उन्हें कहा कि हमारा हैड क्वार्टर ज्यादा दूर नहीं है और इस वक्त घर पर खाना बन रहा है, अतः हमें जाने ” दे। लेकिन उन्होंने कहा कि यह महात्मा जी की आज्ञा है, अतः आप चख कर जाये।

 

हम भोजनशाला पहुँचे तो देखा कि दूसरे समाज के तीन-चार साधु गेट पर खड़े थे। और कह रहे थे कि हम सुबह से भूखे है, अगर दो चार पुड़ी मिल जाये तो भूखा नहीं सोना पडेगा। हमारे साथ चलने वाले दानवीर सेठ ने उन्हें डांट उपट कर भगा दिया।

 

अब आप पैसों वालों का खेल देखिये, एक तरफ वह दानवीर की पदवी लेकर मीटिंग से रवाना हुए, हमें खाने की इच्छा न होने पर भी विशेष आग्रह कर खाना खिलाया, लेकिन दूसरे भूखे साधु लोगों को दो चार पुड़ी भी उपलब्ध न करा सके। इसे कहते है हाथी के खाने के दांत और दिखाने के और। इसी तर्ज पर जांगिड समाज में भी कुछ पूंजीपति शादी विवाह में बड़ी-बड़ी होटलों में आयोजन कर पैसों का दिखावा करते है, दूसरे समाज के लोगों को अपना वैभव दिखाने के लिये बुलाते है और उन्हें अपने सगे छोटे भाई को बुलाने की याद नहीं रहती, क्योंकि वह साधारण पैतृक धंधा करके अपने परिवार को पाल रहा होता है।

 

अगर पूजीपति जांगिड बंधु भव्य शादियों में 20 प्रतिशत कटौती कर ऐसी सामाजिक संस्था को दान करें जो संस्था उन बेसहारा बुजुर्ग को जिनके पीछे कोई संभालने वाला न हो या जिन्हें घर वालों ने बेदखल कर दिया हो, उनके लिए सुबह शाम भोजन व दवाई इलाज की व्यवस्था कर दी जाय, तो वो बुजुर्ग उम्र भर आशीष देगें तथा दूसरे समाज में भी जांगिड़ समाज का नाम रोशन होगा।

 

-Er. Tarachand

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Game of Money

प्रेरणादायी प्रसंग

पुत्रवधु का ससुर से :- मेरे एक साथी विद्युत विभाग से अधिशासी अभियन्ता सेवानिवृत है और जोधपुर में ही निवास करते हैं। उनकी धर्मपत्नी का स्वर्गवास दो वर्ष पूर्व हो चुका है। उनके बड़े पुत्र का देहावसान पन्द्रह वर्ष पूर्व हो चुका है। छोटा बेटा व बहु डॉक्टर सरकारी नौकरी की वजह से सरकारी क्वार्टर में रहते है। जैसे वृद्धावस्था बढ़ती गई उन्होंने सोचा कि अपने सामने ही दोनो बेटों को अपनी संपति बाँट दूं। इसलिये उन्होंने पॉश कॉलोनी में अपने बंगले को बेच दिया तथा बेटों व बेटियों में सम्पति का बंटवारा कर दिया और छोटे लड़के की पुत्रवधु व दो पोतों के लिये शहर से बाहर की कॉलोनी में बड़ा मकान खरीद लिया तथा खुद विधवा बहु के साथ रहने लग गये। अस्सी का दशक पूर्ण करने के बाद शरीर में शिथिलता आने लगी और बीमारियों ने घेर लिया। मैं उन्हें संभालने जाता रहता हूँ। एक दिन मैं उनके घर पहुँचा तो पुत्रवधु ने कहा आप बैठिये में पापाजी को खाना खिला देती हूँ। मेरे सामने ही ससुर को पलग पर सहारा देकर बैठा दिया और पीछे से पैर से सहारा देकर एक हाथ में थाली तथा दूसरे हाथ में रोटी का कौर खिलाने लगी।

 

मेरे साथी कमजोरी की वजह से आँख भी नहीं खोल पा रहे थे और भी कमजोर हो गई थी। खाना खिलाने के बाद वह ससुरजी के सिर पर सहलाने लगी जैसे एक माँ बच्चे को स्नान करने के बाद सिर सहलाती है। मैंने कल्पना की मेरे साथी की माताजी की मृत्यु के बाद उन्हीं के घर पुत्रवधु के रूप में पुनः जन्म हुआ है। देखा आपने पुत्रवधु की ससुर से रिश्तेदारी बेटे की पिताजी से मेरे जान पहिचान वाले राजस्थान सरकार में उच्च प्रशासनिक अधिकारी है। उनका छोटे गाँव में एक शिक्षक के घर पर जन्म हुआ। फिर अपनी मेहनत से भारतीय प्रशासनिक सेवा में चयन हुआ। उनकी शादी भी उच्च प्रशासनिक अधिकारी के साथ हुई, जो कि शायद उच्च घराने की लगती थी। वे अपने शिक्षक समुर से मिलने गाँव नहीं जाती थी, लेकिन भाई साहब पिताजी को संभालने गाँव दौरा करते रहते थे। वे गुरुदेव समय के साथ पूर्ण वृद्धावस्था में पहुंचे तो बेटे ने कहा आपकी आखिरी इच्छा क्या है ? पिताजी ने कहा- मैं चाहता हूँ मैं हरिद्वार में रहूँ और वहीं अपना प्राण त्यागे। वह प्रशासनिक अधिकारी पिताजी को हरिद्वार ले गये। तीन-चार महिने उनकी पूरी सेवा की, यहाँ तक कि पिताजी के मल-मूत्र से गंदे कपड़े खुद धोते थे और देह त्यागने के पहले पिताजी खूब आशीष देते गये। देखी आपने बेटे की पिताजी के प्रति के प्रति कर्तव्यपरायण।

 

-Er. Tarachand

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Inspirational Story

प्रेरणादायी प्रसंग रिश्तेदारी

एक भाई की दूसरे भाई से मेरे एक परिचित परिवार में बड़े ‘भाई साहब श्री वीरेन्द्र जी एयरफोर्स से एयर मार्शल पद से सेवानिवृत हैं और जोधपुर शहर में निवास करते हैं। छोटे भाई साहब मिलिट्री में ब्रिगेडियर पद से रिटायर्ड हुए हैं तथा जोधपुर से 100 किलोमीटर दूर पैतृक गाँव में निवास करते हैं। छोटे भाई साहब श्री सुरेन्द्र जी की धर्मपत्नी का स्वर्गवास हुए काफी समय बीत चुका है। सुरेन्द्र जी को जब भी इच्छा होती या बड़े भाई साहब टेलीफोन से सूचना देकर बुला लेते और फिर दोनों भाईयों में गपशप का कार्यक्रम जोधपुर में चलता रहता। इस तरह दोनों भाईयों में अटूट प्रेम है। बड़े भाई साहब चाहते , छोटा भाई ज्यादा से ज्यादा समय जोधपुर में उनके साथ रहे, लेकिन छोटे भाई को जमीन जायदाद संभालने तथा गाँव वालों से सम्पर्क रखने के लिए गाँव में ही रहने की इच्छा रहती।

 

एक बार छोटे भाई जोधपुर से गाँव के लिए रवाना हुए और दो घंटे बाद बड़े भाई का फोन आ गया। पूछा तुम गाँव पहुँच गए क्या? छोटे भाई ने कहा मैं अभी पहुँचा हूँ और अब घर का ताला खोल रहा है। बड़े भाई ने पूछा अब वापस जोधपुर कब आ रहे हो? देखी आपने एक भाई की दूसरे भाई से रिश्तेदारी।

 

पुत्रवधु की ससुर से मेरे एक साधी विद्युत विभाग से सेवानिवृत्त अधिशाषी अभियन्ता हैं और जोधपुर में ही निवास करते हैं। उनकी धर्मपत्नी का स्वर्गवास दस वर्ष पूर्व हो चुका है। उनके बड़े पुत्र का देहावसान तीन वर्ष पूर्व हो चुका है। छोटा बेटा व बहु डॉक्टर सरकारी नौकरी की वजह से सरकारी क्वार्टर में रहते हैं। जैसे वृद्धावस्था बढ़ती गई उन्होंने सोचा कि मेरे सामने ही दोनों बेटों को मेरी संपत्ति बाँट दूं। इसलिए उन्होंने पॉश कॉलोनी में अपने बंगले को बेच दिया तथा बेटों व बेटियों में सम्पत्ति का बंटवारा कर दिया और छोटे लड़के की पुत्रवधु व दो पोतों के लिए शहर से बाहर की कॉलोनी में बड़ा मकान खरीद लिया तथा खुद विधवा बहु के साथ रहने लग गए। अस्सी का दशक पूर्ण करने के बाद शरीर में शिथिलता आने लगी और बीमारियों ने घेर लिया। मैं उन्हें संभालने जाता रहता हूँ। एक दिन मैं उनके घर पहुँचा तो पुत्रवधु ने कहा आप बैठिए मैं पापाजी को खाना खिला देती हूँ। मेरे सामने ही ससुर को पलंग पर सहारा देकर बैठा दिया और पीछे से पैर से सहारा देकर, एक हाथ में थाली तथा दूसरे हाथ में रोटी का कौर खिलाने लगी।

 

मेरे साथी कमजोरी की वजह से आँख भी नहीं खोल पा रहे थे और याददाश्त भी कमजोर हो गई है। खाना खिलाने के बाद वह ससुरजी के सिर पर ऊंगलियाँ सहलाने लगी जैसे एक माँ बच्चे को स्नान करने के बाद सिर सहलाती है। मैंने कल्पना की मेरे साथी की माताजी की मृत्यु के बाद उन्हीं के घर पुत्रवधु के रूप में पुनः जन्म हुआ है। देखा आपने पुत्रवधु की ससुर से रिश्तेदारी।

 

बेटे की पिताजी से: मेरे जान पहचान वाले राजस्थान सरकार में उच्च प्रशासनिक अधिकारी हैं। उनका छोटे गाँव में एक शिक्षक के घर पर जन्म हुआ। फिर अपनी मेहनत से भारतीय प्रशासनिक सेवा में चयन हुआ। उनकी शादी भी उच्च प्रशासनिक अधिकारी के साथ हुई, जो कि शायद उच्च घराने की लगती थी। वे अपने शिक्षक ससुर से मिलने गाँव नहीं जाती थी, लेकिन भाई साहब पिताजी को संभालने गाँव दौरा करते रहते थे। वे गुरुदेव समय के साथ पूर्ण वृद्धावस्था में पहुँचे तो बेटे ने कहा आपकी आखिरी इच्छा क्या है? पिताजी ने कहा-मैं चाहता हूँ कि मैं हरिद्वार में रहूँ और वहीं अपना प्राण त्यागूं । वह प्रशासनिक अधिकारी पिताजी को हरिद्वार ले गए। तीन-चार महिने उनकी पूरी सेवा की, यहाँ तक कि पिताजी के मल-मूत्र से गंदे कपड़े खुद धोते थे और देह त्यागने के पहले पिताजी खूब आशीष देते गए। देखी आपने बेटे की पिताजी से रिश्तेदारी।

 

-Er. Tarachand

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Inspirational story – Kinship

बचपन की झांकी

आज मैं आपको 80 वर्ष पूर्व के मेरे गाँव वरकाणा, जिला पाली का दृश्य दिखा रहा हूँ जहाँ मेरा विक्रम संवत् 1996 के अकाल के समय जन्म हुआ था। छोटा गाँव 150-200 घरों की आबादी मेरे माता-पिता बताते थे कि उस साल सदी का भयंकर अकाल था। बरसात दो साल से नहीं हो रहा अनाज उत्पादन की कमी से धान की भी कमी थी।

 

बचपन में मेरे चेचक की भयंकर बीमारी हो गई थी, उस समय प्रवेश हो गया। करीब 30 मील दूरतगढ़ कस्बा में हॉस्पिटल था, जहाँ मुझे डॉक्टर को दिखाने के लिए बैलगाड़ी में बैठाकर ले जाया करते थे। भगवान की कृपा से मैं बच गया।

 

छ वर्ष की आयु में मुझे मेरे चाचाजी ने पास के गाँव बिजोवा में प्राथमिक विद्यालय में प्रवेश करवाया, क्योंकि मेरे गाँव में जैन समाज द्वारा संचालित हाई स्कूल छठी कक्षा से पढ़ाई संचालित होती थी। बिजोवा गाँव मेरे गाँव से पानी का नाला रास्ता पार कर स्कूल पहुंचते स्कूल के पुराने अध्यापक का प्रेम देखिए। मैं उनसे दिल्ली में थे। पाचवी कक्षा उत्तीर्ण कर खुद के गाँव में छठी कक्षा में प्रवेश लिया 15 वर्ष पश्चात् एक मेरे दोस्त की बहिन की शादी में मिला। जहाँ वे तथा हाई स्कूल तक वहाँ पढ़ाई की।

 

वर पक्ष की तरफ से बाराती थे। मैंने उन्हें पहचान लिया और नमस्कार गाँव के पास एक सुकड़ी नदी है, जो उस समय बरसात में शुरू होकर चार-पाँच महीने बहती थी। अत: कपड़े धोने तथा स्नान का वहीं नदी तट पर होता था। स्कूल के अधीन एक रहट था, बाकी समय वहाँ स्नान तथा कपड़े धोने का कार्य स्वयं करते थे, ऐसा गुरुजनों ने सिखाया था।

 

गाँव में एक प्रसिद्ध जैन मन्दिर है जहाँ जैन साहब की पेटी है को नसीब हुआ। भगवान का लाख लाख शुक्रिया।। बचपन से ही हम जैन यात्रियों को बस द्वारा यात्रा करते देखते थे। पढ़ाई के दौरान शुरू से होल्डर, दवात का इस्तेमाल होता था, स्वाही पर से दवात में भरकर ले जाते थे। स्कूल में में स्काउटिंग से जुड़ा उससे हाथ से खाना बनाना, सिम्लेलिंग, प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा सीखी और सन् 1956 में अखिल भारतीय स्काउट गाईड की दूसरी जम्बरी जयपुर में आयोजित हुई, उसमें भाग लिया था।

 

अध्यापकों का स्नेह माता-पिता की भांति होता था। उस समय पिताजी की आर्थिक स्थिति ज्यादा अच्छी नहीं थी, अतः अध्यापक मुझे एक-एक किताब उपलब्ध करा देते थे। गाँव में लालटेन तथा दीये के प्रकाश में पढ़ाई करते। पिताजी किसानों के खेती के औजार बनाते, अतः स वगैरह उनके खेत से ले आता और किसान मजदूरी की जगह अनाज देते थे, जो कि साल भर तक चलता। गाँव से रेलवे स्टेशन पाँच किलोमीटर दूर है, जहाँ पैदल जाकर किराने, कॉपी, स्टेशनरी वगैरह खरीद कर लाते स्कूल बोर्डिंग के मैनेजर जोधपुर के स्व. श्री सम्पतराजजी भाली थी, जिन्होंने मुझे पुत्र स्नेह दिया और समय-समय पर मार्गदर्शन देते रहते। आपको ता होगा कि आठवीं कक्षा में पढ़ते समय में यह सोचा करता कि डॉक्टर, इंजीनियर जैन समाज वाले ही बन सकते थे, क्योंकि उस समय अजैन तो आठवी पास कर सरकारी नौकरी में | लग जाते, अन्य अपने पैतृक संभालते।

 

लेकिन प्रभु कृपा से मुझे अच्छे शिक्षकों ने प्रोत्साहित किया और आगे पढ़ने के लिए वातावरण बनाया, सिखाया और उसी वजह से बाद में जोधपुर इंजीनियरिंग कॉलेज में बचपन के समय गाँव में हर ची सुद्ध मिलती थी। पानी कुओं से भरकर ले आते। चारों तरफ हरियाली दिखती। उस समय पर एक दो कमरों वाले खपरैल से ढके हुए होते थे। अतः बुजुर्ग आदमी घर की गली में खाट लगाकर सोते। चोरी झारी का कोई केस नहीं देखा। गाँव के ठाकुर ही उस समय के न्यायाधिपति होते थे, जो लोगों के आपसी झगड़ों का फैसला करते।

 

की और उनको अपना परिचय दिया, तो वे इतने खुश हुए कि मुझे दूसरे दिन उनके रामरस हायर सैकण्डरी स्कूल नं. 3 में बुलाया और कक्षा में उनके विद्यार्थियों से मिलवाया तथा मुझे फिर अपने घर ले गए जहाँ उन्होंने मेरा परिचय परिवार वालों को दिया, अब वो प्रेम कहाँ ? यह बचपन का आनन्द ग्रामीण पृष्ठभूमि वाले मेरे जैसे व्यक्ति

 

-Er. Tarachand

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Childhood Tableau